Sunday 4 May 2014

वह कौन था ?

जियांग बड़ी देर से चट्टान की ओट में खड़ा बारिश रुकने का इंतज़ार कर रहा था। अभी एक घंटा पहले आसमान बिल्कुल साफ था। जियांग को उम्मीद थी कि अँधेरा होते-होते वह घर पहुँच जाएगा। पर बादल ऐसे घिरे कि दो क़दम चलना मुश्किल हो गया। वह बार-बार आसमान की ओर लाचार दृष्टि से ताककर ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था। उसे पता था कि घंटा भर पानी और न थमा तो वापस जाना असंभव हो जाएगा। फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर अँधेरे में चढ़ना काल को दावत देना होगा। जियांग था भी डरपोक। अँधेरे में जाते उसकी जान निकलती थी। इस समय वह बुरी तरह घबराया हुआ था।
आज बहुत दिनों के बाद जियांग मैदानी क्षेत्र में लगने वाले बाज़ार आया था। आते समय बच्चों ने मिठाइयाँ और खिलौने लाने की ज़िद की थी और पत्नी ने कोई अच्छा-सा तोहफ़ा लाने को कहा था। उसने बच्चों के लिए खेल-खिलौने तो ले लिए थे, लेकिन पत्नी के लिए क्या लेकर जाए, समझ नहीं आ रहा था। पूरा बाज़ार छानकर भी उसे कोई ऐसी चीज़ नहीं मिल पा रही थी जिसे पाकर पत्नी ख़ुश हो जाए। जो मिल रही थीं, वह उसके सामर्थ्य के बाहर थीं। जियांग परेशान था कि लौटकर पत्नी को क्या जवाब देगा। वह बेचारी दुखी हो जाएगी।
वैसे, वह सुखी ही कब थी ?
जैसे-जैसे अँधेरा गहरा रहा था, जियांग की घबराहट बढ़ती जा रही थी। बूँदें अभी भी पड़ रही थीं। अब यह तो तय ही हो गया था कि जियांग को रात उसी चट्टान की आड़ में गुज़ारनी है। हारकर वह चुपचाप बैठ गया। वह उस घड़ी को कोस रहा था, जब घर से निकलना हुआ था। उसे बार-बार अपने प्यारे घर की याद आ रही थी, जहाँ वह इस समय लेटकर बच्चों को कहानियाँ सुना रहा होता था।
एक तो भूख, दूसरे ठंडक, ऊपर से डरावनी रात--जियांग की हालत ख़राब हो रही थी। वह एक कोने में सिमटा पड़ा भगवान का नाम ले रहा था। ज़रा-सी खटपट पर अँधेरे में नज़रें फाड़कर देखने लगता।
                बैठे-बैठे जियांग ऊँघने लगा। नींद का झोंका आने ही वाला था कि अचानक किसी के खखारने की आवाज़ से उसकी आँखें खुल गईं। अँधेरे में आँखें फाड़-फाड़कर देखने पर भी उसे कुछ नहीं सूझा। इधर -उधर  नज़रें दौड़ाते हुए जब उसने बाईं ओर देखा तो सफेद पड़ गया। चट्टान पर एक धुँधली आकृति बैठी भीग रही थी। एकदम शांत, निश्चल। न तो उस पर बारिश का असर था और न ही ठंडी हवाओं का। जियांग की तो जान ही निकल गई। वह डर के मारे थरथरा उठा। मन में तरह-तरह के ख़्याल आने लगे। उसने हिम्मत करके काँपती हुई आवाज़ में पूछा, ‘‘क...कौन है वहाँ?’’
उधर  से कोई उत्तर न आया। बस, उसकी ही आवाज़ गहरी घटियों में गूँजकर वापस लौट आई।
जियांग अँधेरे में और सिमट गया। उसे दोरमी की बात याद आने लगी, जिसने बताया था कि ऐसी ही बारिश में रग्गी नाम के बूढ़े की घटियों में गिरकर मृत्यु हो गई थी। अब उसकी आत्मा रात के अँधेरे में रास्तों पर भटका करती है। बहुत से लोगों ने उसे देखा भी है। यह ख़्याल आते ही जियांग सिर से पैर तक थरथरा गया। वह हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगा। उसे बार-बार अपने प्यारे बच्चों और पत्नी की याद आ रही थी।
जियांग ने एक बार फिर डरते हुए उस धुँधली आकृति की ओर देखा। उसे लगा कि यह सचमुच रग्गी की आत्मा है। वैसा ही घुटा सिर, वैसी ही झुकी हुई कमर। जियांग ने डर के मारे आँखें बंद कर लीं और भगवान को याद करने लगा। इसी उहापोह में कब उसकी आँख लग गई पता ही न चला।
सुबह सूरज की किरणों से जियांग की नींद टूटी। आसमान बिल्कुल साफ था। लगता ही नहीं था कि रात भर घनघोर बारिश हुई हो। हड़बड़ाकर उठते हुए उसने सबसे पहले उधर  ही निगाह दौड़ाई, जिधर वह आकृति बैठी थी। वहाँ जो कुछ भी था उसे देखकर पहली बार उसे अपने डरपोक स्वभाव पर हँसी आई। वहाँ कुछ और नहीं सिर्फ एक चट्टान पड़ी थी, जो दूर से देखने पर झुककर बैठे आदमी की तरह लगती थी।
जियांग उसके पास गया। उसे छूकर देखा। सचमुच, जिसे भूत समझकर वह रात भर डरता रहा, वह बाहर कहीं नहीं उसके मन में ही बैठा था। जियांग अपने आप पर हँस पड़ा। उसने उसी क्षण तय कर लिया कि आगे से वह कभी नहीं डरेगा और मन में बैठे भय को दूर भगा देगा।

                जियांग एक पहाड़ी गीत गाता हुआ घर वापस लौट चला।  अब वह पहले वाला डरपोक जियांग नहीं रहा था। उसने मन में बैठे डर को दूर भगा दिया था। पत्नी ने कोई अच्छा-सा तोहफ़ा लाने को कहा था। अब वह बदले हुए जियांग के रूप में सचमुच एक अच्छा-सा तोहफ़ा लेकर लौट रहा था।

7 comments:

  1. वाह! बढ़िया कहानी। नींद भी क्या चीज़ है... नहीं आती तो जीना मुहाल होता।

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  2. shraddha sinhh5 May 2014 at 10:16

    Man ke jeete jeet hai.man ke haare haar.

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  3. http://www.alwidaa.blogspot.in/2014/02/champak-feb-1st-2014.html

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  4. aap ke blog par aa kar achcha laga , sadhuwaad
    namskaar

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  5. वाह...इसे कहते हैं..ड़र के आगे जीत है...

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