पुस्तक : झुनकू
विधा : बाल उपन्यास
प्रकाशक : प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली.
प्रकाशन वर्ष : 2023
पृष्ठ संख्या : 110
मूल्य : 275/-
ईश्वर ने हर व्यक्ति को कोई न कोई विशिष्टता अवश्य दी है। जो व्यक्ति अपनी इस विशिष्टता को पहचान लेता है, मंज़िल उसके क़दमों में होती है। यह विशिष्टता किसी को वैज्ञानिक बना देती है, किसी को दार्शनिक। किसी को खिलाड़ी तो किसी को अभिनेता। संसार में जो भी मशहूर हस्तियाँ हुई हैं, उन्होंने अपनी इस विशिष्टता को पहचाना है। दुनिया ने कितनी भी हँसी उड़ाई, कितनी भी उपेक्षा की, पर वे विश्वास के साथ अपनी धुन में लगे रहे। समय बीतने के साथ-साथ उन्होंने अपनी प्रतिभा को सिद्ध कर दिया। फिर वही दुनिया जो उनकी हँसी उड़ाती थी, उनके पीछे-पीछे चलने लगी। बस, ज़रूरत है तो आत्मविश्लेषण के द्वारा अपनी विशिष्टता को पहचानने की। जिस दिन तुमने उसे पहचान लिया, उस दिन सफलता दूर नहीं।
इस उपन्यास में ऐसा ही एक चरित्र है झुनकू। सीधा-सच्चा, भोला-भाला। स्वार्थ भरी दुनिया की चालाकियों से दूर। सब उसे मूर्ख बनाते हैं। उसकी हँसी उड़ाते हैं, पर वह विचलित नहीं होता। धीरे-धीरे झुनकू इस कमज़ोरी को ही अपनी ताक़त बना लेता है। उसके बाद झुनकू, झुनकू नहीं रहता। वह सच्चाई और ईमानदारी की जीती-जागती मिसाल बन जाता है। सिर्फ मनसुखपुर ही नहीं आस-पास के गाँववाले भी उसके आचरण को देखकर सीखते हैं।
ग्रामीण पृष्ठभूमि में लिखा गया यह उपन्यास सिर्फ झुनकू की कहानी ही नहीं कहता, बल्कि गाँवों की साझी संस्कृति और मेलजोल की कथा भी कहता है। इसमें हँसी-चुहल भी है और गहन संवेदना भी। आशा करता हूँ यह उपन्यास बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी पसंद आयेगा।
उपन्यास विषय वस्तु से रोचक लग रहा है। पढ़ने की कोशिश रहेगी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
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