पुस्तक का नाम: रोचक नन्ही कहानियाँ
प्रकाशक: लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ-226026
मूल्य: 125/ रु0
पृष्ठ संख्या: 72
संस्करण:
2021
कुल संकलित कहानियाँ: 20
पुस्तक की भूमिका
पहले जब तुम जैसा था, तो मुझे भी तुम्हारी तरह पढ़ने का बेहद शौक़ था। पिता जी सरकारी
नौकरी में थे। पोस्टिंग ऐसी जगह थी, जहाँ किताबें तो क्या, ज़रूरत की चीज़ें भी मुश्किल से मिलती थीं। जब गर्मी की दोपहरी
में लू की साँय-साँय हो रही होती, चारों
तरफ सन्नाटा छाया होता, तो वहाँ बने
छोटे-छोटे पाँच सरकारी क्वार्टरों में रहनेवाले कुल जमा सात बच्चे अपने माता-पिता की
नज़र बचाकर बाहर निकल आते। फिर पास के जंगल में किसी पेड़ पर चढ़कर आपस में कहानियाँ बना-बनाकर
कहते-सुनते। इन्हीं दिनों बड़े भाई की नौकरी लखनऊ में लग गई। अब वे महीने-दो महीने में
जब भी लौटते, हमारे लिए चंपक, नंदन, पराग, मधुमुस्कान, लोटपोट जैसी किताबें ले आते। उन दिनों पढ़ने का ऐसा शौक़ था कि
किताबें सिरहाने रखकर सोते। अलस्सुबह जब नींद खुलती तो बिस्तर पर लेटे-लेटे नीम उजाले
में आँखें गड़ा-गड़ाकर पढ़ना शुरू कर देते। जो कहानी अच्छी लग जाती, उसे बार-बार पढ़ते। चलते-फिरते गीत-कविताएँ गुनगुनाते रहते। होड़
लगी रहती कि किसको कितनी कहानियाँ-कविताएँ याद हैं। कहानी-कविताओं के चित्र बनाने की
कोशिश में पन्ने रँगते रहते।
पढ़ते-पढ़ते कब लिखने का शौक़
लग गया पता ही नहीं चला। सन 1990 में, जब मैं कक्षा आठ पास कर चुका था, तो पहली रचना एक अख़बार में छपी। कितनी ख़ुशी मिली होगी, इसका अंदाज़ा तुम लगा सकते हो। उसके बाद से लगातार लिखता रहा।
बहरहाल इस संग्रह में कुछ
कहानियाँ संकलित करने की कोशिश की है। इनमें से अधिकतर कहानियाँ उन्हीं पत्र-पत्रिकाओं
में प्रकाशित हुई हैं, जिन्हें मैं
बचपन में पढ़ा करता था। इस संदर्भ में दिल्ली प्रेस का मैं बेहद आभारी हूँ, जिसने ‘चंपक’ में प्रकाशित इन रचनाओं को अपने संग्रह में संकलित करने की अनुमति
प्रदान की। अब ये कहानियाँ कैसी बन पड़ी हैं, यह तो तुम ही बता सकते हो। तुम इन कहानियों को ज़रूर पढ़ना। और
पढ़ना,
तो यह भी ज़रूर बताना कि तुम्हें कैसी लगीं। इंतज़ार रहेगा।
तुम्हारा भैया