Friday 24 September 2021

मेरी नई पुस्तक रोचक नन्ही कहानियाँ

 


पुस्तक का नाम: रोचक नन्ही कहानियाँ

प्रकाशक: लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ-226026

मूल्य: 125/ रु0

पृष्ठ संख्या: 72

संस्करण: 2021

कुल संकलित कहानियाँ: 20

 

पुस्तक की भूमिका

 

 नन्हे दोस्तो,

पहले जब तुम जैसा था, तो मुझे भी तुम्हारी तरह पढ़ने का बेहद शौक़ था। पिता जी सरकारी नौकरी में थे। पोस्टिंग ऐसी जगह थी, जहाँ किताबें तो क्या, ज़रूरत की चीज़ें भी मुश्किल से मिलती थीं। जब गर्मी की दोपहरी में लू की साँय-साँय हो रही होती, चारों तरफ सन्नाटा छाया होता, तो वहाँ बने छोटे-छोटे पाँच सरकारी क्वार्टरों में रहनेवाले कुल जमा सात बच्चे अपने माता-पिता की नज़र बचाकर बाहर निकल आते। फिर पास के जंगल में किसी पेड़ पर चढ़कर आपस में कहानियाँ बना-बनाकर कहते-सुनते। इन्हीं दिनों बड़े भाई की नौकरी लखनऊ में लग गई। अब वे महीने-दो महीने में जब भी लौटते, हमारे लिए चंपक, नंदन, पराग, मधुमुस्कान, लोटपोट जैसी किताबें ले आते। उन दिनों पढ़ने का ऐसा शौक़ था कि किताबें सिरहाने रखकर सोते। अलस्सुबह जब नींद खुलती तो बिस्तर पर लेटे-लेटे नीम उजाले में आँखें गड़ा-गड़ाकर पढ़ना शुरू कर देते। जो कहानी अच्छी लग जाती, उसे बार-बार पढ़ते। चलते-फिरते गीत-कविताएँ गुनगुनाते रहते। होड़ लगी रहती कि किसको कितनी कहानियाँ-कविताएँ याद हैं। कहानी-कविताओं के चित्र बनाने की कोशिश में पन्ने रँगते रहते।

पढ़ते-पढ़ते कब लिखने का शौक़ लग गया पता ही नहीं चला। सन 1990 में, जब मैं कक्षा आठ पास कर चुका था, तो पहली रचना एक अख़बार में छपी। कितनी ख़ुशी मिली होगी, इसका अंदाज़ा तुम लगा सकते हो। उसके बाद से लगातार लिखता रहा।

बहरहाल इस संग्रह में कुछ कहानियाँ संकलित करने की कोशिश की है। इनमें से अधिकतर कहानियाँ उन्हीं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, जिन्हें मैं बचपन में पढ़ा करता था। इस संदर्भ में दिल्ली प्रेस का मैं बेहद आभारी हूँ, जिसने चंपकमें प्रकाशित इन रचनाओं को अपने संग्रह में संकलित करने की अनुमति प्रदान की। अब ये कहानियाँ कैसी बन पड़ी हैं, यह तो तुम ही बता सकते हो। तुम इन कहानियों को ज़रूर पढ़ना। और पढ़ना, तो यह भी ज़रूर बताना कि तुम्हें कैसी लगीं। इंतज़ार रहेगा।

तुम्हारा भैया


Sunday 7 March 2021

बाल किसने किए सफाचट?

 


            ‘‘हाय, मोरी अम्मा...’’ एक सुबह कत्तो बुआ दहाड़ें मारकर रोने लगीं।

गाँववाले उनकी आवाज़ सुनकर दौड़े। हजारा और पिटारा भी आँखें मलते भागे आए।

लोग दरवाज़ा पीट रहे थे, पर कत्तो बुआ दरवाज़ा खोलने को तैयार नहीं थीं। ऊपर से उनका दहाड़े मारकर रोना लोगों को हैरान किए हुए था।

जब आवाज़ देते काफी देर हो गई और दरवाज़ा नहीं खुला तो हजारा ने कहा, ‘‘सब लोग पीछे हटो, मैं दरवाज़ा तोड़ देता हूँ।’’

पिटारा उन्हें किनारे ले जाकर फुसफुसाए, ‘‘ऐसा सोचना भी मत। वर्ना कत्तो बुआ दरवाज़ा ठीक कराने का सारा पैसा हमसे वसूल लेंगी।’’

‘‘तो फिर...?’’ हजारा ने पूछा।

‘‘रुको, मैं कोशिश करता हूँ,’’ पिटारा ने कहा और दरवाज़े की झिर्रियों से अंदर झाँकने की कोशिश करने लगे। देखा तो एक किनारे पल्लू से मुँह ढाँपे कत्तो बुआ रोए जा रही हैं।

पिटारा ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘बुआ, क्या हुआ? कुछ तो बताओ? बाहर आओ, देखो सब लोग तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं।’’

बड़ी मुश्किलों से बुआ का मुँह खुला, ‘‘अरे बाहर कैसे आऊँ, बेटा? मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रही।’’

‘‘अरे ऐसा क्या हो गया? कोई परेशानी होगी तो हम लोग तो हैं न? तुम्हीं तो कहती हो कि हजारा-पिटारा हर मर्ज की दवा हैं।’’

‘‘पर इस बार तुम लोग भी कुछ नहीं कर सकते।’’

लेकिन पिटारा ने हार नहीं मानी। मनुहार करते रहे। ख़ैर, बड़ी मुश्किलों से कत्तो बुआ ने दरवाज़ा खोला। सामने आते ही सब हैरान रह गए। कत्तो बुआ के सिर के सारे बाल सफाचट थे।

‘‘यह किसने किया...?’’ सबके मुँह से एकाएक निकला।

‘‘यही पता होता तो मुए की हजामत बना डालती। रात को दरवाज़ा बंद करके सोई थी। न जाने कौन कमबख़्त बालों पर उस्तरा फेर गया। जाने किस जन्म की दुश्मनी निकाली है, करमजले ने।’’ कत्तो बुआ ने रोते-रोते बताया।

‘‘तुम्हारे बाल मुँड गए और तुम्हें ख़बर भी न हुई?’’ किसी ने पूछा।

‘‘क्या पता बेहोशी की कोई जड़ी सुँघा दी हो,’’ भीड़ से ही किसी ने उत्तर दिया।

हजारा-पिटारा की भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

अगली सुबह फिर वही घटना हुई। चौकीदार मोगा सिंह का भी वही हाल था। सिर के बाल ही नहीं बड़ी-बड़ी गलमुच्छें भी ग़ायब थीं।

मोगा सिंह मुँह फाड़-फाड़कर रोते हुए कह रहा था, ‘‘दुष्ट, बाल मूँड देता तो कोई बात नहीं थी। कम से कम मूँछें तो छोड़ देता। कितने प्यार से तेल पिला-पिलाकर पाला था। अब तो गली का मरियल कुत्ता भी मुझसे नहीं डरेगा।’’

जब तीसरे दिन बल्लू काका के साथ भी यही घटना हुई तो लोग गंभीर हो गए। आख़िर कौन है जो रातों-रात चुपके से सबके बाल मूँड जाता है। उसे भला इसमें क्या मिलता है?

‘‘कहीं भूत-चुड़ैल का चक्कर तो नहीं?’’ रज्जो ताई बोलीं।

‘‘कोई न कोई बात तो ज़रूर है। लेकिन आप लोग घबराइए मत। हम इसका पता लगाकर रहेंगे। क्यों हजारा?’’ पिटारा ने कहा।

‘‘बिल्कुल पिटारा,’’ हजारा ने सीना फुलाकर हामी भरी।

हजारा-पिटारा ने ऐलान किया, ‘‘भाइयो, अब डरने की बात नहीं है। आप लोग घरों में चैन की नींद सोइए। कल से हम लोग रात भर जागकर पहरेदारी करेंगे। अगर वह बाल मुँडवाचंगुल में आ गया तो उसकी ऐसी हजामत बनाएँगे कि हमेशा याद रखेगा।’’

रात होते ही हजारा-पिटारा मजबूत डंडे लेकर पहरेदारी में जुट गए।

‘‘जागते रहो...’’ हजारा ने ज़ोर की आवाज़ लगाई।

‘‘अरे..रे, क्या कर रहे हो?’’ पिटारा ने खीझकर बोले, ‘‘हमारी आवाज़ सुनकर बाल-मुँडवाको ख़बर हो जाएगी और वह भाग निकलेगा।’’

हजारा खिसियाकर हें-हेंकरने लगे। दोनों चुपचाप अंधेरी गलियों में फिरने लगे।

अचानक उन्हें भग्गू सुनार की दीवार के पास एक साया नज़र आया। हजारा-पिटारा सावधान हो गए। मन ही मन ख़ुश भी हो रहे थे कि आज बाल मुँडवाको पकड़कर एक बार फिर गाँववालों की निगाह में हीरो बन जाएँगे। पिटारा ने फुसफुसाते हुए हजारा को समझाया, ‘‘एक तरफ से मैं जाता हूँ, दूसरी तरफ से तुम जाओ। फिर दोनों एक साथ बाल मुँडवापर झपट पड़ेंगे।’’

मौका देखकर एक तरफ से हजारा झपटे, दूसरी तरफ से पिटारा। पर यह क्या? साए ने एक ओर हजारा को उछालकर फेंका और दूसरी ओर पिटारा को। पटखनी खाते ही दोनों को समझ में आ गया कि जिसे वह बाल मुँडवासमझ रहे थे, वह गज्जू चौधरी का मरखना साँड है। साँड दीवार से रगड़कर पीठ की खुजली शांत कर रहा था। अचानक आई बाधा से वह ग़ुस्से से भर गया था।

उसने खुरों से जमीन खोदी, नथुनों से झाग फेंका और दौड़ पड़ा हजारा-पिटारा के पीछे। उसने उन्हें पूरे गाँव की गलियाँ घुमा डालीं। इतना भागे, इतना भागे कि इसी भागम-भाग में सुबह हो गई। इधर सुबह हुई उधर लल्लू हलवाई के घर रोना-पीटना मच गया। पता चला उसके बाल भी किसी ने रातों-रात मूँड दिए।

हजारा-पिटारा चक्कर में आ गए कि आख़िर माजरा क्या है? रात भर गलियों में भागा-दौड़ी करते रहे पर जाने किस बीच बाल मुँडवाअपना काम कर गया!

पिटारा ने हजारा से कहा, ‘‘लगता है कि बाल मुँडवाबहुत चालाक है। हमें उससे ज़्यादा होशियारी दिखानी होगी, तभी हम उसे पकड़ पाएँगे। हमें दिन में भी इधर-उधर फिरते रहना चाहिए। हो सकता है कोई सुराग हाथ लगे।’’

‘‘हाँ, पिटारा, कह तो बिल्कुल सही रहे हो। पर रात भर जागने के कारण मुझे नींद आ रही है।’’ हजारा ने मुँह फाड़ते हुए कहा।

‘‘यहाँ गाँववालों पर मुसीबत मँडरा रही है और तुम्हें नींद की पड़ी है!’’ पिटारा ने ग़ुस्से से कहा, ‘‘मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारो और चलो निगरानी में जुट जाओ।’’

हजारा-पिटारा दिन भर गाँव भर में घूमते रहे। शाम को जब वे एक दूकान के सामने से गुज़र रहे थे कि अचानक किसी की आवाज़ सुनाई दी--‘‘भैया, एकदम बढ़िया तेज़ धारवाला उस्तरा देना। तलवार जैसा। ऐसा कि एक बार फिराते ही बाल सफाचट’’

हजारा-पिटारा चौंक पड़े। दोनों एक पेड़ के पीछे छिपकर देखने लगे। देखा तो भब्भन नाई दूकान पर खड़ा उस्तरा ख़रीद रहा था।

हजारा उतावले होकर बोले, ‘‘ओह, तो यह है बाल मुँडवा। चलो, इस दुष्ट को दबोचकर सबक़ सिखाते हैं।’’

‘‘नहीं, नहीं, अभी नहीं। इसे रंगों हाथ पकड़ेंगे। बस, अब इस पर नज़र रखनी है।’’ पिटारा ने हजारा को रोकते हुए कहा।

हजारा-पिटारा दोनों भब्भन की निगरानी में लग गए। धीरे-धीरे रात गहराने लगी। पिटारा बोले, ‘‘हजारा, होशियार रहना। अब किसी भी समय भब्भन घर से निकल सकता है।’’

हजारा, जो अब तक उबासियाँ ले-लेकर मुँह फाड़े जा रहे थे, बोले, ‘‘निकलना है तो जल्दी निकले दुष्ट, यहाँ बुरा हाल हो रहा है। एक तो नींद, ऊपर से ये मच्छर।’’

रात बीतती रही, पर भब्भन घर से न निकला। नज़र गड़ाए-गड़ाए हजारा-पिटारा की आँखें थक गईं।

इधर मुग़ेर् ने कुकड़ू कूँकिया, उधर भब्भन के चिल्लाने की आवाज़ आई। हजारा-पिटारा लपककर पहुँचे तो देखा कि भब्भन की घुँघराली लटें एकदम सफाचट हैं। दोनों हैरान रह गए। कहाँ तो वे भब्भन पर शक कर रहे थे और यहाँ भब्भन ख़ुद बाल मुँडवाका शिकार हो गया।

हजारा-पिटारा थके क़दमों से कत्तो बुआ के घर आ बैठे। पिटारा कहने लगे, ‘‘एक बात समझ में नहीं आई। हम लोगों ने पूरी रात भब्भन के घर पर निगाह रखी। क़सम है जो एक बार को भी आँखें झपकीं हों। आख़िर ये बाल मुँडवाकिस बीच उसके बाल मूँड गया?’’

‘‘यही सोच-सोचकर तो मेरा सिर भी दर्द से फटने लगा है।’’ हजारा सूजी-सूजी आँखें लिए हुए बोले।

कत्तो बुआ बोलीं, ‘‘लाओ, बेटा, मैं तुम्हारे सिर में तेल लगाकर चंपी कर दूँ। फिर पराठे बना देती हूँ। भूखे होगे।’’

कत्तो बुआ हजारा के सिर में चंपी करती हुई बोलीं, ‘‘यह बहुत ख़ास तेल है। लगते ही सारा दर्द उड़न छू हो जाएगा।’’

कत्तो बुआ बालों में चंपी करने लगीं और हजारा सिर में होती गुदगुदी का मज़ा लेने लगे। चंपी करने के बाद बुआ पराठे बनाने चली गईं। तभी हजारा ने उलझे बालों को दुरुस्त करने के लिए सिर पर हाथ फिराया। सिर पर हाथ फिराना था कि सारे बाल झप्पसे नीचे आ गिरे। हजारा भौंचक रह गए। पिटारा का भी मुँह खुला का खुला रह गया। कत्तो बुआ भी हैरत में थीं कि आख़िर यह कैसे हुआ?

पिटारा चिल्लाए, ‘‘बुआ, यह कौन-सा तेल तुमने लगा दिया? कहाँ से लेकर आई थीं?’’

कत्तो बुआ घबराई हुई बोलीं, ‘‘हफ़्ते भर पहले एक तेल बेचनेवाला आया था। कह रहा था कि रात में इसे लगाकर सोया जाए तो बाल सावन की दूब की तरह बढ़ते हैं।’’

‘‘बुआ, तुमने ठीक नहीं सुना,’’ हजारा बिसूरते हुए बोले, ‘‘बाल तेज़ी से बढ़ते नहीं, कमबख़्त ने कहा होगा बाल तेज़ी से झड़ते हैं...’’

‘‘पर चलो, इसी बहाने बाल मुँडवाका भेद तो खुला।’’ पिटारा गहरी साँस लेते हुए बोले, ‘‘इसीलिए कहते हैं कि बिना जाने-परखे कोई चीज़ नहीं ख़रीदनी चाहिए। चलो, जो हुआ सो हुआ। अब जल्दी से पराठे खिला दो ताकि बाक़ी लोगों को ख़बर कर आऊँ, वर्ना खजानपुर गंजों का गाँव न मशहूर हो जाए।’’

पिटारा की बात पर कत्तो बुआ तो हँसीं तो रुआँसे बैठे हजारा को भी हँसी आ गई।

 

Sunday 3 January 2021

उफ...कितना मुश्किल है!

 

सायरा बहुत ख़ुश है। आज उसके स्कूल में वार्षिकोत्सव है। वह नाटक में हिस्सा ले रही है। नाटक में वह भारत माता बनेगी। क़ादरी सर हफ्तों से प्रैक्टिस करा रहे हैं। वैसे तो वह उर्दू के टीचर हैं पर नाटक में उनकी ख़ास दिलचस्पी है। इसलिए माथुर मैम ने उन्हें ही नाटक की जिम्मेदारी सौंपी है। इसी तरह गीत-गायन में साजिद सर का जवाब नहीं। वह ख़ुद भी बहुत अच्छा गाते हैं। नाटक के अंत में सायरा को एक गीत भी गाना है, जिसकी तैयारी उन्होंने ही कराई है। वह उसकी बहुत तारीफ़ करते हैं। कहते हैं कि उसका गला बहुत अच्छा है।

हालाँकि सायरा नाटक में वह लक्ष्मीबाई का रोल करना चाहती थी, पर माथुर मैम ने कहा कि उसे भारत माता ही बनना है। मैम ने जो कह दिया, वह पत्थर पर लकीर समझो। उसे उदास देखकर क़ादरी सर ने कहा था, ‘‘तुम कितनी प्यारी गुडि़या-सी दिखती हो। भोली-भाली, परी-सी। भारत माता भी बिल्कुल तुम्हारे जैसी है। इस रोल में तुम बहुत अच्छी दिखोगी।’’ बस वह पूरे मन से तैयार हो गई थी।


सायरा जल्दी-जल्दी तैयार हुई। उसने अम्मी-अब्बू को सलाम किया और सायकिल उठाकर चल दी। कार्यक्रम 11 बजे से होना था, पर सभी को 8 बजे बुलाया गया था। सायरा ने स्कूल में क़दम रखा तो सारे टीचर पहले से मौजूद थे। सायरा ने सबको गुड मार्निंग किया और उस कमरे की तरफ चल दी, जहाँ नाटक की तैयारी हो रही थी। क़ादरी सर उसे देखते ही बोले, ‘‘अरे सायरा, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। फटाफट आ जाओ। तैयारी में बहुत वक़्त लगेगा।’’

मेकअप की जि़म्मेदारी सीमा मैम की थी। मैम ने उसे तिरंगी साड़ी पहना दी। ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरी। फिर उन्होंने उसके चेहरे पर ढेर सारा पाउडर मल दिया। गोरी-चिट्टी तो वह पहले से थी। अब बिल्कुल बर्फ की गुडि़या-सी लगने लगी। उन्होंने उसके माथे पर एक बड़ी-सी लाल बिंदी भी लगा दी। तभी हड़बड़ाई हुई माथुर मैम वहाँ आ गई। इस वार्षिकोत्सव की सारी जि़म्मेदारी उन्हीं के सिर थी।

काफी देर तक मेकअप करने के बाद सीमा मैम बोलीं, ‘‘बेटा, अब तुम्हारा मेकअप पूरा हो गया। पर ध्यान रहे, चेहरे पर पानी न लगने पाए। और हाँ, अब यहीं चुपचाप बैठो। खेल-कूद और दौड़-भाग से मेकअप की ऐसी की तैसी हो जाएगी।’’

सायरा गर्दन सीधी किए-किए परेशान हो चुकी थी। मैम के आदेश से वह बेचैन हो उठी। यह तो बड़ी मुसीबत हो गई। वह बोली, ‘‘मैम, पानी तो पी सकती हूँ।’’

‘‘हाँ, लेकिन थोड़ा-सा,’’ माथुर मैम आकर बोलीं, ‘‘स्टेज पर पहुँचने के बाद वहाँ से हिलना नहीं है। जब तक नाटक ख़त्म न हो जाए। अब जल्दी तैयार हो जाओ। 11 बज रहे हैं। हमारे चीफ गेस्ट आते ही होंगे।’’

उफ, ये क्या मुसीबत है,’’ सायरा ने सोचा।

चीफ गेस्ट सचमुच वक़्त के पाबंद थे। ठीक 11 बजे वह आ गए। उनके आते ही कार्यक्रम शुरू हो गया।

स्टेज का पर्दा हटते ही सामने सायरा दिखाई दी। एकदम शांत, चेहरे पर मुस्कराहट बिखराती किसी परी की तरह। सिर पर सुनहरा मुकुट। गले में चमकते मोतियों की माला। एक हाथ में तिरंगा। तालियों से पूरा वातावरण गूँज उठा। चीफ गेस्ट इतने ख़ुश हुए कि खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। सायरा ख़ुशी से पुलक उठी।

पर जल्द ही उसे अहसास हो गया कि यह काम उतना आसान नहीं है जितना उसने समझ रखा था। लगातार मुस्कराते रहने से जल्द ही उसका चेहरा दर्द करने लगा। उसने एक लंबी साँस लेकर चेहरा सामान्य कर लिया। उसी पल विंग में बैठी माथुर मैम ने अँगूठे और तर्जनी से होठों के पास स्माइल बनाई। मतलब साफ था--मुस्कराते रहो। ऐसे ही एक बार जब तात्या टोपे अपनी तलवार लहराते हुए निकले तो वह उत्सुकता से उनकी ओर देखने लगी। माथुर मैम ने चेहरे पर सख़्ती लाकर फिर उसे इशारा किया कि सामने देखो।

एक ही स्थिति में खड़े रहने से उसकी कमर दुखने लगी। कभी वह एक पैर पर ज़ोर देकर खड़ी होती तो कभी दूसरे पैर पर। गनीमत यह थी कि साड़ी पहने होने के कारण सामने से पता नहीं चल रहा था। वर्ना माथुर मैम उसे फिर घूरतीं।

थोड़ी देर और गुज़री कि पीठ में खुजली होने लगी। उसने कनखियों से देखा मैम उसी की ओर देख रही थीं। वह कसमसाकर रह गई। उसने कोशिश की वह अपना ध्यान खुजली की ओर से हटा ले। पर अब तो लगता था कि सारे शरीर में खुजली होने लगी। सायरा को पसीने छूटने लगे।

तभी लक्ष्मीबाई और अंग्रेज़ों के मुकाबले का दृश्य आया। एक पल को लगा कि लक्ष्मीबाई की तलवार कहीं उससे न टकरा जाए। यों तो तलवार कोई असली नहीं थी, कार्डबोर्ड पर चमकीली पन्नी चिपकाकर बनाई गई थी, पर चोट लगने का डर तो था ही। कोई झूठमूठ तिनका भी आँखों के आगे लहरा दे तो एक पल को घबराहट तो होती ही है।

ख़ैर जैसे-तैसे लक्ष्मीबाई गईं तो एक मक्खी उसे आकर परेशान करने लगी। कभी नाक पर आकर बैठ जाती, तो कभी माथे पर रेंगने लगती। उसे अजीब गुदगुदी-सी होने लगी। किसी तरह से मक्खी भागी तो उसे ज़ोर की प्यास लगने लगी। प्यास रोके-रोके उसका सिर दर्द करने लगा। आँखें सिरदर्द से लाल हो गईं। अपना ध्यान बँटाने के लिए वह उल्टी गिनतियाँ गिनने लगी। अम्मी ने उसे बताया था कि जब अपना ध्यान कहीं से हटाना हो तो उल्टी गिनतियाँ गिनना शुरू कर दो। पर गिनतियाँ भी जल्द ही 100 से शुरू होकर 1 पर आ गईं। अबकी बार उसने हज़ार से गिनना शुरू किया।

ख़ैर किसी तरह करते-करते नाटक ख़त्म हुआ और पर्दा गिरा। सायरा लपककर ड्रेसिंग रूम की ओर भागी। बाहर तालियाँ बज रही थीं। लोगों को नाटक बहुत पसंद आया था।

संचालक महोदय मंच पर आकर नाटक के पात्रें का परिचय कराने लगे। सबका परिचय कराकर उन्होंने कहा, ‘‘...और सबसे अंत में मैं आपका परिचय उस बच्ची से कराना चाहता हूँ, जिसने इस नाटक में भारत माता की भूमिका निभाई। ज़ोरदार तालियों से सायरा का स्वागत कीजिए.. ’’

भीड़ ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं। लेकिन सायरा मंच पर नहीं आई। भीड़ में खुसर-पुसर होने लगी।

‘‘सायरा...!’’ संचालक ने दोबारा पुकारा।

माथुर मैम, क़ादरी सर और साजिद सर घबराकर ड्रेसिंग रूम की तरफ लपके।

वहाँ का दृश्य देखकर उनकी हँसी छूट गई। सायरा थकान के कारण कुर्सी पर लुढ़की खर्राटे भर रही थी।

‘‘बेचारी बच्ची...’’ माथुर मैम के मुँह से निकला। उन्होंने सबको चुप रहने का इशारा किया और उसके माथे पर हौले से एक पप्पी लेकर बाहर आ गईं।