सायरा बहुत ख़ुश है। आज उसके स्कूल में वार्षिकोत्सव है। वह नाटक में हिस्सा ले रही है। नाटक में वह भारत माता बनेगी। क़ादरी सर हफ्तों से प्रैक्टिस करा रहे हैं। वैसे तो वह उर्दू के टीचर हैं पर नाटक में उनकी ख़ास दिलचस्पी है। इसलिए माथुर मैम ने उन्हें ही नाटक की जिम्मेदारी सौंपी है। इसी तरह गीत-गायन में साजिद सर का जवाब नहीं। वह ख़ुद भी बहुत अच्छा गाते हैं। नाटक के अंत में सायरा को एक गीत भी गाना है, जिसकी तैयारी उन्होंने ही कराई है। वह उसकी बहुत तारीफ़ करते हैं। कहते हैं कि उसका गला बहुत अच्छा है।
हालाँकि सायरा नाटक में वह लक्ष्मीबाई का रोल करना चाहती थी, पर माथुर मैम ने कहा कि उसे भारत माता ही बनना है। मैम ने जो कह दिया, वह पत्थर पर लकीर समझो। उसे उदास देखकर क़ादरी सर ने कहा था, ‘‘तुम कितनी प्यारी गुडि़या-सी दिखती हो। भोली-भाली, परी-सी। भारत माता भी बिल्कुल तुम्हारे जैसी है। इस रोल में तुम बहुत अच्छी दिखोगी।’’ बस वह पूरे मन से तैयार हो गई थी।
सायरा जल्दी-जल्दी तैयार हुई। उसने अम्मी-अब्बू को सलाम किया और सायकिल उठाकर
चल दी। कार्यक्रम 11 बजे से होना था,
पर सभी को 8 बजे बुलाया गया था। सायरा ने
स्कूल में क़दम रखा तो सारे टीचर पहले से मौजूद थे। सायरा ने सबको गुड मार्निंग
किया और उस कमरे की तरफ चल दी, जहाँ नाटक की तैयारी हो रही थी। क़ादरी सर
उसे देखते ही बोले,
‘‘अरे सायरा, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। फटाफट
आ जाओ। तैयारी में बहुत वक़्त लगेगा।’’
मेकअप की जि़म्मेदारी सीमा मैम की थी। मैम ने उसे तिरंगी साड़ी पहना दी। ऊपर
केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरी। फिर उन्होंने उसके चेहरे पर ढेर सारा पाउडर मल
दिया। गोरी-चिट्टी तो वह पहले से थी। अब बिल्कुल बर्फ की गुडि़या-सी लगने लगी।
उन्होंने उसके माथे पर एक बड़ी-सी लाल बिंदी भी लगा दी। तभी हड़बड़ाई हुई माथुर
मैम वहाँ आ गई। इस वार्षिकोत्सव की सारी जि़म्मेदारी उन्हीं के सिर थी।
काफी देर तक मेकअप करने के बाद सीमा मैम बोलीं, ‘‘बेटा, अब
तुम्हारा मेकअप पूरा हो गया। पर ध्यान रहे, चेहरे पर पानी न लगने पाए। और
हाँ, अब यहीं चुपचाप बैठो। खेल-कूद और दौड़-भाग से मेकअप की ऐसी की तैसी हो जाएगी।’’
सायरा गर्दन सीधी किए-किए परेशान हो चुकी थी। मैम के आदेश से वह बेचैन हो उठी।
यह तो बड़ी मुसीबत हो गई। वह बोली, ‘‘मैम, पानी
तो पी सकती हूँ।’’
‘‘हाँ, लेकिन
थोड़ा-सा,’’ माथुर मैम आकर बोलीं,
‘‘स्टेज पर पहुँचने के बाद वहाँ से हिलना नहीं है। जब तक नाटक
ख़त्म न हो जाए। अब जल्दी तैयार हो जाओ। 11 बज रहे हैं। हमारे चीफ गेस्ट
आते ही होंगे।’’
‘उफ, ये
क्या मुसीबत है,’’
सायरा ने सोचा।
चीफ गेस्ट सचमुच वक़्त के पाबंद थे। ठीक 11 बजे वह आ गए। उनके आते ही
कार्यक्रम शुरू हो गया।
स्टेज का पर्दा हटते ही सामने सायरा दिखाई दी। एकदम शांत, चेहरे
पर मुस्कराहट बिखराती किसी परी की तरह। सिर पर सुनहरा मुकुट। गले में चमकते
मोतियों की माला। एक हाथ में तिरंगा। तालियों से पूरा वातावरण गूँज उठा। चीफ गेस्ट
इतने ख़ुश हुए कि खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। सायरा ख़ुशी से पुलक उठी।
पर जल्द ही उसे अहसास हो गया कि यह काम उतना आसान नहीं है जितना उसने समझ रखा
था। लगातार मुस्कराते रहने से जल्द ही उसका चेहरा दर्द करने लगा। उसने एक लंबी
साँस लेकर चेहरा सामान्य कर लिया। उसी पल विंग में बैठी माथुर मैम ने अँगूठे और
तर्जनी से होठों के पास स्माइल बनाई। मतलब साफ था--मुस्कराते रहो। ऐसे ही
एक बार जब तात्या टोपे अपनी तलवार लहराते हुए निकले तो वह उत्सुकता से उनकी ओर
देखने लगी। माथुर मैम ने चेहरे पर सख़्ती लाकर फिर उसे इशारा किया कि सामने देखो।
एक ही स्थिति में खड़े रहने से उसकी कमर दुखने लगी। कभी वह एक पैर पर ज़ोर
देकर खड़ी होती तो कभी दूसरे पैर पर। गनीमत यह थी कि साड़ी पहने होने के कारण
सामने से पता नहीं चल रहा था। वर्ना माथुर मैम उसे फिर घूरतीं।
थोड़ी देर और गुज़री कि पीठ में खुजली होने लगी। उसने कनखियों से देखा मैम उसी
की ओर देख रही थीं। वह कसमसाकर रह गई। उसने कोशिश की वह अपना ध्यान खुजली की ओर से
हटा ले। पर अब तो लगता था कि सारे शरीर में खुजली होने लगी। सायरा को पसीने छूटने
लगे।
तभी लक्ष्मीबाई और अंग्रेज़ों के मुकाबले का दृश्य आया। एक पल को लगा कि
लक्ष्मीबाई की तलवार कहीं उससे न टकरा जाए। यों तो तलवार कोई असली नहीं थी, कार्डबोर्ड
पर चमकीली पन्नी चिपकाकर बनाई गई थी, पर चोट लगने का डर तो था ही।
कोई झूठमूठ तिनका भी आँखों के आगे लहरा दे तो एक पल को घबराहट तो होती ही है।
ख़ैर जैसे-तैसे लक्ष्मीबाई गईं तो एक मक्खी उसे आकर परेशान करने लगी। कभी नाक
पर आकर बैठ जाती,
तो कभी माथे पर रेंगने लगती। उसे अजीब गुदगुदी-सी होने लगी।
किसी तरह से मक्खी भागी तो उसे ज़ोर की प्यास लगने लगी। प्यास रोके-रोके उसका सिर
दर्द करने लगा। आँखें सिरदर्द से लाल हो गईं। अपना ध्यान बँटाने के लिए वह उल्टी
गिनतियाँ गिनने लगी। अम्मी ने उसे बताया था कि जब अपना ध्यान कहीं से हटाना हो तो
उल्टी गिनतियाँ गिनना शुरू कर दो। पर गिनतियाँ भी जल्द ही 100 से
शुरू होकर 1 पर आ गईं। अबकी बार उसने हज़ार से गिनना शुरू किया।
ख़ैर किसी तरह करते-करते नाटक ख़त्म हुआ और पर्दा गिरा। सायरा लपककर ड्रेसिंग
रूम की ओर भागी। बाहर तालियाँ बज रही थीं। लोगों को नाटक बहुत पसंद आया था।
संचालक महोदय मंच पर आकर नाटक के पात्रें का परिचय कराने लगे। सबका परिचय
कराकर उन्होंने कहा,
‘‘...और सबसे अंत में मैं आपका परिचय उस बच्ची से कराना चाहता
हूँ, जिसने इस नाटक में भारत माता की भूमिका निभाई। ज़ोरदार तालियों से सायरा का
स्वागत कीजिए.. ’’
भीड़ ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं। लेकिन सायरा मंच पर नहीं आई। भीड़ में
खुसर-पुसर होने लगी।
‘‘सायरा...!’’ संचालक
ने दोबारा पुकारा।
माथुर मैम,
क़ादरी सर और साजिद सर घबराकर ड्रेसिंग रूम की तरफ लपके।
वहाँ का दृश्य देखकर उनकी हँसी छूट गई। सायरा थकान के कारण कुर्सी पर लुढ़की
खर्राटे भर रही थी।
‘‘बेचारी बच्ची...’’ माथुर मैम के मुँह से निकला। उन्होंने सबको चुप रहने का इशारा किया और उसके माथे पर हौले से एक पप्पी लेकर बाहर आ गईं।