‘‘हाय, मोरी अम्मा...’’ एक सुबह कत्तो बुआ दहाड़ें मारकर रोने लगीं।
गाँववाले उनकी आवाज़ सुनकर दौड़े। हजारा और पिटारा भी आँखें
मलते भागे आए।
लोग दरवाज़ा पीट रहे थे, पर कत्तो बुआ दरवाज़ा खोलने को तैयार नहीं थीं। ऊपर से उनका
दहाड़े मारकर रोना लोगों को हैरान किए हुए था।
जब आवाज़ देते काफी देर हो गई और दरवाज़ा नहीं खुला तो हजारा
ने कहा,
‘‘सब लोग पीछे हटो, मैं दरवाज़ा तोड़ देता हूँ।’’
पिटारा उन्हें किनारे ले जाकर फुसफुसाए, ‘‘ऐसा सोचना भी मत। वर्ना कत्तो बुआ दरवाज़ा ठीक कराने का सारा
पैसा हमसे वसूल लेंगी।’’
‘‘तो फिर...?’’ हजारा
ने पूछा।
‘‘रुको, मैं
कोशिश करता हूँ,’’ पिटारा ने कहा और दरवाज़े
की झिर्रियों से अंदर झाँकने की कोशिश करने लगे। देखा तो एक किनारे पल्लू से मुँह
ढाँपे कत्तो बुआ रोए जा रही हैं।
पिटारा ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘बुआ, क्या हुआ? कुछ तो बताओ? बाहर आओ, देखो
सब लोग तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं।’’
बड़ी मुश्किलों से बुआ का मुँह खुला, ‘‘अरे बाहर कैसे आऊँ, बेटा? मैं
तो किसी को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रही।’’
‘‘अरे ऐसा क्या हो गया? कोई परेशानी होगी तो हम लोग तो हैं न? तुम्हीं तो कहती हो कि हजारा-पिटारा हर मर्ज की दवा हैं।’’
‘‘पर इस बार तुम लोग भी कुछ नहीं कर सकते।’’
लेकिन पिटारा ने हार नहीं मानी। मनुहार करते रहे। ख़ैर, बड़ी मुश्किलों से कत्तो बुआ ने दरवाज़ा खोला। सामने आते ही
सब हैरान रह गए। कत्तो बुआ के सिर के सारे बाल सफाचट थे।
‘‘यह किसने किया...?’’ सबके मुँह से एकाएक निकला।
‘‘यही पता होता तो मुए की हजामत बना डालती। रात को दरवाज़ा बंद
करके सोई थी। न जाने कौन कमबख़्त बालों पर उस्तरा फेर गया। जाने किस जन्म की
दुश्मनी निकाली है, करमजले ने।’’ कत्तो बुआ ने रोते-रोते बताया।
‘‘तुम्हारे बाल मुँड गए और तुम्हें ख़बर भी न हुई?’’ किसी ने पूछा।
‘‘क्या पता बेहोशी की कोई जड़ी सुँघा दी हो,’’ भीड़ से ही किसी ने उत्तर दिया।
हजारा-पिटारा की भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
अगली सुबह फिर वही घटना हुई। चौकीदार मोगा सिंह का भी वही
हाल था। सिर के बाल ही नहीं बड़ी-बड़ी गलमुच्छें भी ग़ायब थीं।
मोगा सिंह मुँह फाड़-फाड़कर रोते हुए कह रहा था, ‘‘दुष्ट, बाल
मूँड देता तो कोई बात नहीं थी। कम से कम मूँछें तो छोड़ देता। कितने प्यार से तेल
पिला-पिलाकर पाला था। अब तो गली का मरियल कुत्ता भी मुझसे नहीं डरेगा।’’
जब तीसरे दिन बल्लू काका के साथ भी यही घटना हुई तो लोग
गंभीर हो गए। आख़िर कौन है जो रातों-रात चुपके से सबके बाल मूँड जाता है। उसे भला
इसमें क्या मिलता है?
‘‘कहीं भूत-चुड़ैल का चक्कर तो नहीं?’’ रज्जो ताई बोलीं।
‘‘कोई न कोई बात तो ज़रूर है। लेकिन आप लोग घबराइए मत। हम इसका
पता लगाकर रहेंगे। क्यों हजारा?’’ पिटारा
ने कहा।
‘‘बिल्कुल पिटारा,’’ हजारा ने सीना फुलाकर हामी भरी।
हजारा-पिटारा ने ऐलान किया, ‘‘भाइयो, अब
डरने की बात नहीं है। आप लोग घरों में चैन की नींद सोइए। कल से हम लोग रात भर
जागकर पहरेदारी करेंगे। अगर वह ‘बाल मुँडवा’ चंगुल में आ गया तो उसकी ऐसी हजामत बनाएँगे कि हमेशा याद
रखेगा।’’
रात होते ही हजारा-पिटारा मजबूत डंडे लेकर पहरेदारी में जुट
गए।
‘‘जागते रहो...’’ हजारा ने ज़ोर की आवाज़ लगाई।
‘‘अरे..रे, क्या
कर रहे हो?’’ पिटारा ने खीझकर बोले, ‘‘हमारी आवाज़ सुनकर ‘बाल-मुँडवा’ को ख़बर हो जाएगी और वह भाग निकलेगा।’’
हजारा खिसियाकर ‘हें-हें’ करने
लगे। दोनों चुपचाप अंधेरी गलियों में फिरने लगे।
अचानक उन्हें भग्गू सुनार की दीवार के पास एक साया नज़र आया।
हजारा-पिटारा सावधान हो गए। मन ही मन ख़ुश भी हो रहे थे कि आज ‘बाल मुँडवा’ को पकड़कर एक बार फिर गाँववालों की निगाह में हीरो बन
जाएँगे। पिटारा ने फुसफुसाते हुए हजारा को समझाया, ‘‘एक तरफ से मैं जाता हूँ, दूसरी तरफ से तुम जाओ। फिर दोनों एक साथ ‘बाल मुँडवा’ पर झपट पड़ेंगे।’’
मौका देखकर एक तरफ से हजारा झपटे, दूसरी तरफ से पिटारा। पर यह क्या? साए ने एक ओर हजारा को उछालकर फेंका और दूसरी ओर पिटारा को।
पटखनी खाते ही दोनों को समझ में आ गया कि जिसे वह ‘बाल मुँडवा’ समझ रहे थे, वह गज्जू चौधरी का मरखना साँड है। साँड दीवार से रगड़कर पीठ
की खुजली शांत कर रहा था। अचानक आई बाधा से वह ग़ुस्से से भर गया था।
उसने खुरों से जमीन खोदी, नथुनों से झाग फेंका और दौड़ पड़ा हजारा-पिटारा के पीछे। उसने
उन्हें पूरे गाँव की गलियाँ घुमा डालीं। इतना भागे, इतना भागे कि इसी भागम-भाग में सुबह हो गई। इधर सुबह हुई
उधर लल्लू हलवाई के घर रोना-पीटना मच गया। पता चला उसके बाल भी किसी ने रातों-रात
मूँड दिए।
हजारा-पिटारा चक्कर में आ गए कि आख़िर माजरा क्या है? रात भर गलियों में भागा-दौड़ी करते रहे पर जाने किस बीच ‘बाल मुँडवा’ अपना काम कर गया!
पिटारा ने हजारा से कहा, ‘‘लगता है कि ‘बाल मुँडवा’ बहुत चालाक है। हमें उससे ज़्यादा होशियारी दिखानी होगी, तभी हम उसे पकड़ पाएँगे। हमें दिन में भी इधर-उधर फिरते रहना
चाहिए। हो सकता है कोई सुराग हाथ लगे।’’
‘‘हाँ, पिटारा, कह तो बिल्कुल सही रहे हो। पर रात भर जागने के कारण मुझे
नींद आ रही है।’’ हजारा ने मुँह फाड़ते हुए
कहा।
‘‘यहाँ गाँववालों पर मुसीबत मँडरा रही है और तुम्हें नींद की
पड़ी है!’’
पिटारा ने ग़ुस्से से कहा, ‘‘मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारो और चलो निगरानी में जुट
जाओ।’’
हजारा-पिटारा दिन भर गाँव भर में घूमते रहे। शाम को जब वे
एक दूकान के सामने से गुज़र रहे थे कि अचानक किसी की आवाज़ सुनाई दी--‘‘भैया, एकदम बढ़िया तेज़ धारवाला उस्तरा देना। तलवार जैसा। ऐसा कि एक
बार फिराते ही बाल सफाचट’’
हजारा-पिटारा चौंक पड़े। दोनों एक पेड़ के पीछे छिपकर देखने
लगे। देखा तो भब्भन नाई दूकान पर खड़ा उस्तरा ख़रीद रहा था।
हजारा उतावले होकर बोले, ‘‘ओह, तो यह है ‘बाल मुँडवा’। चलो, इस
दुष्ट को दबोचकर सबक़ सिखाते हैं।’’
‘‘नहीं, नहीं, अभी नहीं। इसे रंगों हाथ पकड़ेंगे। बस, अब इस पर नज़र रखनी है।’’ पिटारा ने हजारा को रोकते हुए कहा।
हजारा-पिटारा दोनों भब्भन की निगरानी में लग गए। धीरे-धीरे
रात गहराने लगी। पिटारा बोले, ‘‘हजारा, होशियार रहना। अब किसी भी समय भब्भन घर से निकल सकता है।’’
हजारा, जो
अब तक उबासियाँ ले-लेकर मुँह फाड़े जा रहे थे, बोले, ‘‘निकलना
है तो जल्दी निकले दुष्ट, यहाँ बुरा
हाल हो रहा है। एक तो नींद, ऊपर से ये
मच्छर।’’
रात बीतती रही, पर भब्भन घर से न निकला। नज़र गड़ाए-गड़ाए हजारा-पिटारा की
आँखें थक गईं।
इधर मुग़ेर् ने ‘कुकड़ू कूँ’ किया, उधर भब्भन के चिल्लाने की आवाज़ आई। हजारा-पिटारा लपककर
पहुँचे तो देखा कि भब्भन की घुँघराली लटें एकदम सफाचट हैं। दोनों हैरान रह गए।
कहाँ तो वे भब्भन पर शक कर रहे थे और यहाँ भब्भन ख़ुद ‘बाल मुँडवा’ का शिकार हो गया।
हजारा-पिटारा थके क़दमों से कत्तो बुआ के घर आ बैठे। पिटारा
कहने लगे,
‘‘एक बात समझ में नहीं आई। हम लोगों ने पूरी
रात भब्भन के घर पर निगाह रखी। क़सम है जो एक बार को भी आँखें झपकीं हों। आख़िर ये ‘बाल मुँडवा’ किस बीच उसके बाल मूँड गया?’’
‘‘यही सोच-सोचकर तो मेरा सिर भी दर्द से फटने लगा है।’’ हजारा सूजी-सूजी आँखें लिए हुए बोले।
कत्तो बुआ बोलीं, ‘‘लाओ, बेटा, मैं तुम्हारे सिर में तेल लगाकर चंपी कर दूँ। फिर पराठे बना
देती हूँ। भूखे होगे।’’
कत्तो बुआ हजारा के सिर में चंपी करती हुई बोलीं, ‘‘यह बहुत ख़ास तेल है। लगते ही सारा दर्द उड़न छू हो जाएगा।’’
कत्तो बुआ बालों में चंपी करने लगीं और हजारा सिर में होती
गुदगुदी का मज़ा लेने लगे। चंपी करने के बाद बुआ पराठे बनाने चली गईं। तभी हजारा ने
उलझे बालों को दुरुस्त करने के लिए सिर पर हाथ फिराया। सिर पर हाथ फिराना था कि
सारे बाल ‘झप्प’ से नीचे आ गिरे। हजारा भौंचक रह गए। पिटारा का भी मुँह खुला
का खुला रह गया। कत्तो बुआ भी हैरत में थीं कि आख़िर यह कैसे हुआ?
पिटारा चिल्लाए, ‘‘बुआ, यह कौन-सा
तेल तुमने लगा दिया? कहाँ से
लेकर आई थीं?’’
कत्तो बुआ घबराई हुई बोलीं, ‘‘हफ़्ते भर पहले एक तेल बेचनेवाला आया था। कह रहा था कि रात
में इसे लगाकर सोया जाए तो बाल सावन की दूब की तरह बढ़ते हैं।’’
‘‘बुआ, तुमने ठीक
नहीं सुना,’’ हजारा बिसूरते हुए बोले, ‘‘बाल तेज़ी से बढ़ते नहीं, कमबख़्त ने कहा होगा बाल तेज़ी से झड़ते हैं...’’
‘‘पर चलो, इसी
बहाने ‘बाल मुँडवा’ का भेद तो खुला।’’ पिटारा गहरी साँस लेते हुए बोले, ‘‘इसीलिए कहते हैं कि बिना जाने-परखे कोई चीज़ नहीं ख़रीदनी
चाहिए। चलो, जो हुआ सो हुआ। अब जल्दी
से पराठे खिला दो ताकि बाक़ी लोगों को ख़बर कर आऊँ, वर्ना खजानपुर गंजों का गाँव न मशहूर हो जाए।’’
पिटारा की बात पर कत्तो बुआ तो हँसीं तो रुआँसे बैठे हजारा
को भी हँसी आ गई।