Wednesday, 29 October 2025

शेर की खुजली

एक बार शेर के सिर में खुजली मची। शुरू-शुरू में तो उसे बुरा नहीं लगा। बल्कि पंजों से सिर खुजलाने में मज़ा आया। पर धीरे-धीरे उसकी समस्या बढ़ती गई। अब तो जब-तब उसके सिर में खुजली मचने लगी। रात को तो सबसे ज़्यादा। वह ठीक से सो भी नहीं पाता। शिकार करने में भी समस्या आने लगी। वह घात लगाता कि अचानक खुजली शुरू हो जाती। उसका ध्यान भंग हो जाता और शिकार भाग जाता।

उसने धूल में लोट-पोट लगाई। नदी में लटें भिगो-भिगोकर नहाया। पर खुजली जस की तस। पंजों की खरोंच से सिर की चमड़ी में घाव बनने लगे।

शेर अपने को जंगल का राजा समझता था। अपनी समस्या किसी से कह भी नहीं सकता था। इसलिए उसने बाहर निकलना कम कर दिया। उसका ज़्यादातर समय माँद में ही गुज़रता।

एक दिन वह माँद के दरवाज़े बैठा था कि अचानक ऊपर से एक बंदर आ टपका। बंदर जब तक सँभलता शेर ने उसे दबोच लिया। बंदर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह गिड़गिड़ाने लगा। 

शेर ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें छोड़ सकता हूँ। लेकिन एक शर्त पर।’’

बंदर जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। उसने हामी भर दी।

शेर ने कहा, ‘‘ज़रा देखो तो मेरे सिर में खुजली क्यों मच रही है?’’

बंदर ने पंजों से उसके बाल सुलझाए और हैरानी से बोला, ‘‘शेर जी, आपके बालों में तो जुएँ पड़ गई हैं।’’

‘‘श...श...श...!’ शेर ने घबराकर उसे चुप कराया, ‘‘अगर जंगल में किसी को यह बात पता चली तो तुम्हें फाड़कर खा जाऊँगा। समझ लेना।’’

बंदर ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं रोज़ आकर बालों से जुएँ निकाल दूँ?’’

शेर ने सोचा अगर जानवरों की नज़र पड़ गई तो भारी जग-हँसाई होगी। उसने कहा, ‘‘नहीं यह ठीक नहीं है। तुम शहर आते-जाते रहते हो। किसी डॉक्टर को बुुला लाओ तो ठीक रहेगा।’’

बंदर अनमनाया तो शेर गुर्राकर बोला, ‘‘जान प्यारी है तो मेरी बात मान लो।’’

मरता क्या न करता। बंदर तैयार हो गया।

बंदर शहर पहुँचकर इधर-उधर डॉक्टर को तलाशने लगा। पर उसे सफलता नहीं मिली। दिन ढलने लगा तो बंदर चिंतित हो उठा। अगर बिना डॉक्टर को साथ लिए लौटता तो शेर उसे खा जाता। वह एक पेड़ पर बैठा सोच में डूबा हुआ था। तभी उसकी नज़र एक आदमी पर पड़ी। उसके हाथ में लोहे का छोटा-सा बक्सा था। बंदर समझा यही डॉक्टर है। उसने उसका बक्सा छीना और जंगल की ओर भाग चला। वह आदमी ‘पकड़ो-पकड़ो’ करता हुआ उसके पीछे दौड़ा।

आगे-आगे बंदर, पीछे-पीछे आदमी। बंदर भागते-भागते माँद तक आ पहुँचा। आदमी जब हाँफते-हाँफते पास पहुँचा तो शेर को सामने देखकर उसकी घिग्घी बँध गई।

शेर ने कहा, ‘‘घबराओ नहीं, अगर तुम मेरी खुजली का इलाज कर दोगे तो मैं तुम्हें ज़िंदा जाने दूँगा।’’

वह आदमी दरअसल एक नाई था। उसने कहा, ‘‘मैं आपकी खुजली का इलाज कर दूँगा। पर जब तक इलाज चलेगा आपको आँखें बंद रखनी होंगी।’’

शेर राज़ी हो गया। नाई ने चटपट उस्तरा निकाला और शेर का सिर मूँडने लगा। सिर होती गुदगुदी महसूस करके शेर शेर को बहुत अच्छा लगा। आँखें बंद होने पर उसे कुछ पता भी न चला।  

सिर मूँडते ही नाई चटपट नौ-दो-ग्यारह हो गया। बंदर तो पहले ही भाग निकला था।

शेर को जब असलियत पता चली तो मारे शर्म के उसने अपना सिर पंजों में छिपा लिया। 

उस दिन के बाद शेर की खुजली तो दूर हो गई, पर वह महीनों अपनी माँद से बाहर नहीं निकला। 


Monday, 14 April 2025

नई पुस्तकें


1. पिप्पो क्यों चुप है?

अपनी बातों से घर भर में शोर मचानेवाली पिप्पो एक दिन चुप थी। सब हैरान कि आख़िर मामला क्या है? बातूनी पिप्पो चुप क्यों है? पर जब अंत में भेद खुलता है तो सब हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते हैं।


बड़े साइज़ में रंगीन और मोटे काग़ज़ पर छपी इस पुस्तक में 8 पृष्ठ हैं। पुस्तक के सुंदर चित्र निखिल वर्मा ने बनाए हैं। संपादन हीना परवीन जी का है।


2. यह अंडा किसका है?

बंदर को जंगल में एक अंडा मिलता है। अंडा किसका है, यह पता लगाने वह जंगल की ओर निकल पड़ता है। रास्ते में उसे रोचक अनुभव होते हैं। और अंत में सच्चाई पता चलने पर बंदर हैरान रह जाता है।


इस बिग बुक में 12 पृष्ठ हैं। चित्रांकन मिलन कुमार और संपादन हीना परवीन जी का है।

 

दोनों पुस्तकें लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई हैं। लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन (LLF) एक गैर-लाभकारी संगठन है जो बच्चों के लिए भाषा और साक्षरता कौशल के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। यह संगठन शिक्षकों और शिक्षक-प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करता है, शैक्षिक सामग्री विकसित करता है, और राज्य सरकारों के साथ मिलकर परियोजनाओं को लागू करता है, ताकि सभी बच्चों को समान रूप से सीखने का अवसर मिल सके।


Friday, 21 February 2025

टिंबकटूँ और अफलातून

 

दो जादूगर थे। एक का नाम था टिंबकटूँ, दूसरे का अफलातून। दोनों के घर पास-पास थे। लेकिन पड़ोसी होने के बावजूद उनमें मेल-जोल नहीं था। लोग कहा करते थे--

  एक दिसंबर दूसरा जून,

 टिंबकटूँ और अफलातून।


एक दिन दोनों में किसी बात पर झगड़ा हो गया।

टिंबकटूँ ने गुस्से में एक तिनका उठाया। अगड़म-बगड़म छूकहकर फूँक मारी। तिनका एक मोटा, तेल पिलाया हुआ डंडा बन गया और उड़ चला अफलातून की ओर। अफलातून भी कम नहीं था। उसने भी एक तिनका उछाला। तिनका झटपट तलवार में बदल गया। तलवार ने लपककर डंडे के दो टुकड़े कर दिए।

अपने वार को असफल होते देख टिंबकटूँ को बहुत ग़ुस्सा आया। इस बार उसने ढेर सारे तिनके उठाए और अफलातून की ओर उछाल दिए। तिनके हवा में उड़ते ही तीर बन गए। चमचमाते-नुकीले फालों वाले। तीरों को अपनी तरफ आता देख अफलातून ने एक कपड़ा हवा में उछाला। वह कपड़ा फौरन मज़बूत ढाल बन गया। उसने सारे तीरों को बीच में ही रोक लिया।

अब तो ग़ुस्से से टिंबकटूँ की मूँछें फड़फड़ाने लगीं। उसने एक डंडा उठाकर फेंका। डंडा काले साँप में बदल गया और फन फैलाकर अफलातून की ओर लपका। अफलातून ने फौरन ही जादू से एक चील बना दी। वह साँप को पंजों में लेकर उड़ गई।


टिंबकटूँ के ग़स्से का ठिकाना न रहा। उसने मुट्ठी भरकर धूल उठाई और अगड़म-बगड़म छूकहकर अफलातून के आँगन में उछाल दी। धूल ढेर सारे ज़हरीले बिच्छुओं में बदल गई। बिच्छू अपने डंक उठाकर अफलातून की ओर लपकने लगे। लेकिन अफलातून बिल्कुल भी नहीं घबराया। उसने फौरन जादू से बवंडर बना दिया। गोल-गोल घूमता बवंडर सारे बिच्छुओं को आसमान में उड़ा ले गया।


इस बार टिंबकटूँ ने आग का एक गोला बनाकर अफलातून की ओर उछाला। आग का गोला ऐसा लपलपाया कि आस-पास उड़ रहे पक्षी डरकर भाग चले। अफलातून ने फौरन पानी भरा बादल बनाया और आग के गोले पर छोड़ दिया। आग का गोला फुस्सहो गया।

टिंबकटूँ ने अबकी एक शेर बनाया। ख़ूँखार और ताक़तवर। शेर इतनी ज़ोर से दहाड़ा कि आस-पास घरों के शीशे हिलने लगे। लेकिन शेर ज्योंहि अफलातून की ओर लपका, उसने एक मज़बूत जाल में शेर को क़ैद कर दिया।

जाल काटने के लिए टिंबकटूँ ने ढेर सारे चूहे छोड़ दिए। अफलातून ने फौरन ही उनके पीछे बिल्लियों को दौड़ा दिया। चूहे डर के मारे वापस भागे। छिपने की जगह न पाकर चूहे टिंबकटूँ के कपड़ों में घुस गए।

टिंबकटूँ उछल पड़ा। उसे गुदगुदी होने लगी। इस बार वह जादू से एक भयंकर गुरिल्ला बनाना चाहता था। पर चूहों की गुदगुदी से उसका जादू उलट गया। गुरिल्ले की जगह ढेर सारे सफेद कबूतर बन गए। कबूतर फड़फड़ाते हुए अफलातून के कंधों पर बैठ गए। एक कबूतर उसके सिर पर बैठकर गुटरगूँ करने लगा।

अफलातून ने सोचा शायद टिंबकटूँ उससे दोस्ती करना चाहता है। वह बहुत ख़ुश हुआ। उसने ढेर सारे फूल टिंबकटूँ पर बरसा दिए। फूलों की ख़ुशबू से टिंबकटूँ का मन बदल गया। वह चाहकर भी ग़ुस्सा न रह सका। उसने अफलातून से कहा, ‘‘मेरे दोस्त मुझे माफ कर दो। बेकार की लड़ाई में कुछ नहीं रखा है।’’

अफलातून लपककर टिंबकटूँ से गले मिल गया।

फिर दोनों ने मिलकर रंग-बिरंगे गुब्बारे उड़ाए। इतने गुब्बारे कि उनसे पूरा आसमान भर गया।