उसने धूल में लोट-पोट लगाई। नदी में लटें भिगो-भिगोकर नहाया। पर खुजली जस की तस। पंजों की खरोंच से सिर की चमड़ी में घाव बनने लगे।
शेर अपने को जंगल का राजा समझता था। अपनी समस्या किसी से कह भी नहीं सकता था। इसलिए उसने बाहर निकलना कम कर दिया। उसका ज़्यादातर समय माँद में ही गुज़रता।
एक दिन वह माँद के दरवाज़े बैठा था कि अचानक ऊपर से एक बंदर आ टपका। बंदर जब तक सँभलता शेर ने उसे दबोच लिया। बंदर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह गिड़गिड़ाने लगा।
शेर ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें छोड़ सकता हूँ। लेकिन एक शर्त पर।’’
बंदर जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। उसने हामी भर दी।
शेर ने कहा, ‘‘ज़रा देखो तो मेरे सिर में खुजली क्यों मच रही है?’’
बंदर ने पंजों से उसके बाल सुलझाए और हैरानी से बोला, ‘‘शेर जी, आपके बालों में तो जुएँ पड़ गई हैं।’’
‘‘श...श...श...!’ शेर ने घबराकर उसे चुप कराया, ‘‘अगर जंगल में किसी को यह बात पता चली तो तुम्हें फाड़कर खा जाऊँगा। समझ लेना।’’
बंदर ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं रोज़ आकर बालों से जुएँ निकाल दूँ?’’
शेर ने सोचा अगर जानवरों की नज़र पड़ गई तो भारी जग-हँसाई होगी। उसने कहा, ‘‘नहीं यह ठीक नहीं है। तुम शहर आते-जाते रहते हो। किसी डॉक्टर को बुुला लाओ तो ठीक रहेगा।’’
बंदर अनमनाया तो शेर गुर्राकर बोला, ‘‘जान प्यारी है तो मेरी बात मान लो।’’
मरता क्या न करता। बंदर तैयार हो गया।
शेर ने कहा, ‘‘घबराओ नहीं, अगर तुम मेरी खुजली का इलाज कर दोगे तो मैं तुम्हें ज़िंदा जाने दूँगा।’’
वह आदमी दरअसल एक नाई था। उसने कहा, ‘‘मैं आपकी खुजली का इलाज कर दूँगा। पर जब तक इलाज चलेगा आपको आँखें बंद रखनी होंगी।’’
सिर मूँडते ही नाई चटपट नौ-दो-ग्यारह हो गया। बंदर तो पहले ही भाग निकला था।
शेर को जब असलियत पता चली तो मारे शर्म के उसने अपना सिर पंजों में छिपा लिया।
उस दिन के बाद शेर की खुजली तो दूर हो गई, पर वह महीनों अपनी माँद से बाहर नहीं निकला।