‘‘पापा...कहाँ हैं आप?’’
निक्की की आवाज़ पाते ही पापा हड़बड़ा गए। पाँच मिनट पहले
निक्की ने चाय का कप लाकर उनकी मेज़ पर रखा था। वह अब भी वैसे का वैसा रखा था। पापा
की आदत ऐसी थी कि काम में उलझते तो होश न रहता। पर निक्की भी घर की दारोग़ा है।
उसके रहते कुछ भी गड़बड़ नहीं हो सकती। घर में उसका सब पर रोब चलता है। मजाल है किसी
की जो कमरे का पंखा चलता छोड़ दे, गीज़र
बंद करना भूल जाए, ऊँची आवाज़
में टीवी चला ले। कब खाना खाया जाएगा, कब पढ़ाई होगी, कब टीवी देखा जाएगा यह सब निक्की ही तय करती है। दादी की शह
पर उसके हौसले और भी बढ़े हुए हैं। घरवाले उसे हिटलर कहते हैं।
जब तक निक्की कमरे में आती-आती पापा लंबे घूँट से चाय का कप
ख़ाली कर चुके थे।
‘‘मैं...मैं चाय पी चुका, ठंडी होने से पहले, सचमुच,’’ पापा
हड़बड़ाते हुए बोले।
चोर की दाढ़ी में तिनका। वह कहने तो कुछ और आई थी, मगर पापा की हड़बड़ी ने सारा राज़ खोल दिया।
‘‘हूँ...,’’ निक्की
ने सिर हिलाया, ‘‘पर मैं तो दूसरी शिकायत
लेकर आई थी?’’
‘‘दूसरी? कौन-सी?’’ पापा हैरानी से बोले।
‘‘वॉशबेसिन का टैप किसने खुला छोड़ दिया था?’’
पापा लैपटॉप पर नज़र गड़ाए-गड़ाए थक जाते थे। उनकी आदत थी कि
बीच-बीच में उठकर ठंडे पानी से आँखें धुल लिया करते थे।
‘‘नहीं-नहीं, मैंने
तो बंद कर दिया था। कोई और रहा होगा। रजत होगा। चाहे पूछकर देख लो। सच कह रहा हूँ,’’ पापा अटक-अटककर बोले। उन्हें याद तो नहीं आ रहा था। पर इतना
समझ गए थे कि निक्की कह रही है तो सही होगा।
‘‘और कोई नहीं सिर्फ आप थे। आपने बंद ज़रूर किया था, मगर पूरी तरह से नहीं।’’
‘‘पर यह तो बहुत छोटी-सी ग़लती है। इसके लिए...’’ पापा ने कहा।
‘‘छोटी-सी ग़लती?’’ इससे पहले कि पापा बात पूरी करते निक्की शुरू हो गई। और
निक्की जब शुरू हो जाती है तो उसे रोकना आसान नहीं, ‘‘आपको पता है कि पानी हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है? भले ही हमारी धरती का दो तिहाई हिस्सा पानी से ढका है, पर उस दो तिहाई हिस्से में पीने योग्य पानी का प्रतिशत
सिर्फ 2.5 है। बाक़ी 97.5 प्रतिशत पानी खारा है, जो हमारे किसी काम का नहीं। इस 2.5 प्रतिशत में भी सिर्फ 1 प्रतिशत पानी तरल रूप में है, बाक़ी ग्लेशियरों में जमा है। आपको पता है कि पानी की बरबादी
करके आप आने वाली पीढ़ियों के लिए कितना ग़लत कर रहे हैं?’’
पापा ने हाथ जोड़ लिए, ‘‘ठीक है, दादी
अम्मा,
आगे से ऐसा नहीं होगा।’’
निक्की लौटी तो लॉबी में बैठे चाचा अख़बार पढ़ रहे थे। लॉबी
में ट्यूब लाइट की रोशनी फैली हुई थी। निक्की ने आगे बढ़कर लाइट ऑफ कर दी। चाचा
नाराज़ होते हुए बोले, ‘‘निक्की...मैं
पढ़ रहा हूँ न?’’
‘‘तो पढ़ने के लिए दिन में लाइट जलाने की ज़रूरत पड़ती है क्या?’’ कहते हुए निक्की ने खिड़की के पर्दे हटा दिए।
चाचा की नाराज़गी का गुब्बारा फुस्स हो गया। वह झेंपते हुए
बोले,
‘‘सॉरी...’’
तभी उन दोनों की बातचीत सुनकर मम्मी वहाँ आ गईं। निक्की ने
मम्मी की ओर देखते हुए शिकायती लहज़े में टोका, ‘‘मम्मी आप शायद कुछ भूल रही हैं...!’’
‘उफ...’ मम्मी
उल्टे पैरों वापस दौड़ीं। उन्होंने कमरे का पंखा चलता छोड़ दिया था।
‘‘ओफ़्फ़ोह! आप लोगों को समझ में क्यों नहीं आता है कि बिजली
बचाना कितना ज़रूरी है। हमारे पास पैसे हैं, हम बिल भरने में समर्थ हैं, तो इसका मतलब यह नहीं
कि बिना ज़रूरत के बिजली फूँकें...’’
‘‘बस करो जी, बस
करो। हमने मान ली अपनी ग़लती।’’ चाचा
हाथ जोड़कर दुहरे होते हुए बोले।
निक्की हँस पड़ी।
तभी दादी ने प्रवेश किया। वह नाली में काग़ज़ और रैपर डालते
बच्चों को डाँट पिलाकर आई थीं। कहने लगीं, ‘‘इस घर में कोई भुलक्कड़ है, कोई आलसी। कोई लापरवाह, कोई कामचोर। एक अकेली बेचारी बच्ची किस-किस को समझाए।’’
दादी को देखते ही निक्की उनसे लिपटकर बोली, ‘‘दादी, कल
मेरे स्कूल में पेंटिंग का कॉम्पिटीशन है। मैंने पेंटिंग तो तैयार कर ली है। पर
उसका फ्रेम बनाने के लिए कुछ सामान चाहिए। आप मेरे साथ बाज़ार चलेंगी?’’
‘‘क्यों नहीं मेरी बच्ची, बस अभी तैयार होकर आती हूँ।’’
निक्की दादी के साथ बाज़ार चली गई। टोका-टाकी करने में
निक्की अपनी दादी से कम न थी, इसलिए
दादी से उसकी ख़ूब बनती थी। दादी हमेशा उस पर अपना प्यार उड़ेलती रहती थीं।
निक्की के जाते ही मम्मी ने रजत को आवाज़ दी, ‘‘कहाँ हो बेटा? जल्दी-जल्दी होमवर्क निपटा लो। वर्ना, निक्की आते ही ख़बर लेगी।’’
मम्मी के दोबारा पुकारने पर रजत कमरे से निकला तो उसका
चेहरा लटका हुआ था।
‘‘क्या हुआ?’’ मम्मी
ने हैरानी से पूछा।
रजत कुछ न बोला। बस मम्मी का हाथ पकड़कर दीदी के कमरे की ओर
ले गया। कमरे का दृश्य देखते ही मम्मी के होश उड़ गए। निक्की की पेंटिंग ज़मीन पर
पड़ी थी और उस पर दूध का गिलास औंधा पड़ा था। पेंटिंग का रंग दूध में घुलकर पूरे
कमरे में फैल रहा था।
मम्मी ने सिर पकड़ लिया, ‘‘हे भगवान! यह कैसे हुआ?’’
‘‘मुझसे गिर गया...’’ रजत सिसकता हुआ बोला।
‘‘निक्की ने कितनी मेहनत से यह पेंटिंग तैयार की थी। अब तो वह
आते ही सारा घर आसमान पर उठा लेगी। अम्मा भी बहुत डाँट पिलाएँगी।’’ मम्मी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें।
पापा और चाचा को पता चला तो वे भी बहुत घबराए। सबने रजत को
ख़ूब डाँट पिलाई। पर रजत को डाँट लेना समस्या का हल नहीं था। आपस में सलाह-मशविरा
हुआ। सबने तय किया कि सुबूत मिटाकर सारा इल्ज़ाम बिल्ली पर मढ़ दिया जाए। योजना के
अनुसार सफाई अभियान शुरू हो गया।
पर जब कोई काम कम समय पर निपटाना हो तो घड़ी की सुइयाँ ऐसे
भागती हैं जैसे टेबिल फैन। अभी पूरा काम निपटा भी नहीं था कि निक्की और दादी लौट
आईं। सबके सब घबरा गए कि अब क्या होगा?
किसी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी। घर में क़दम रखते ही
निक्की को सारा माजरा समझ में आ गया। पेंटिंग की ऐसी हालत देखकर उसका पारा सातवें
आसमान पर पहुँच गया।
‘‘किसने किया यह सब?’’ वह चीख़ी।
एक पल को घर में सन्नाटा छा गया। हाथ में बाल्टी-वाइपर लिए
और पैंट के पायचे समेटे खड़े पापा और चाचा जैसे स्टेच्यू हो गए। मम्मी की ज़ुबान
तालू से लग गई। रजत के चेहरे का रंग उड़ गया।
‘‘सब काम ख़राब कर दिया। इस मूर्ख रजत के दिमाग़ में तो कोई बात
घुसती ही नहीं। कितनी बार मना किया कि मेरे कमरे की ओर मत जाया करो। पर कोई बात
कान से सुने तब न?’’ कहते-कहते
निक्की मम्मी-पापा की ओर मुड़ी और कहने लगी, ‘‘पर आप लोग तो समझदार हैं न? आप लोगों ने भी नहीं सोचा?’’
‘‘वो, बेटा
दरअसल...’’
पापा हकलाते हुए बोले।
‘‘दरअसल क्या पापा? आपको पता है फर्श साफ करने के लिए आप लोगों ने कितना पानी
बरबाद कर दिया।’’
‘‘पानी...!’’ सबने
हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखा। मम्मी बोलीं, ‘‘पर बेटा तुम्हारी पेंटिंग...’’
‘‘उफ...’’ निक्की
झुँझलाई,
‘‘आप लोगों को पेंटिंग की पड़ी है? पानी की जो बरबादी हुई उसकी कोई फिक्र ही नहीं। यही काम
पोछा लगाकर भी तो हो सकता था। पेंटिंग तो दोबारा बन जाएगी। पर क्या पानी बनाया जा
सकता है?’’
निक्की शुरू थी और सारे लोग सिर झुकाए उसकी बात सुन रहे थे।
बहुत ही अच्छी प्रेरक कहानी
सच पानी जीवन का आधार है
आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई
हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteपानी के महत्व पर इतनी प्यारी कहानी पहले कभी नहीं पढने को मिली। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते पता ही नहीं चला कि कब पात्रों के बीच घुस गया। खो गया। मम्मी, पापा और चाचा के साथ मेरी खुद की श्वास तेज हो गई। धड़कने बढ़ गई। पर अन्त में अप्रत्याशित मोड़ कहानी में जान डाल गया। सर, यह आपके लेखन की अनोखी अदा है।
ReplyDeleteवाह क्या बात भाई यथार्थ और कोमलता का अद्भुत संगम
ReplyDeleteबहुत बहुत शानदार प्रेरक कहानी सर जी
ReplyDeleteपुष्प लता शर्मा
Deleteरोचक अंत लिए बहुत प्रेरक खूबसूरत कहानी।
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