Sunday 12 May 2019

मूर्खिस्तान--मूर्खों का स्वर्ग


एक बार मशहूर लेखक मूरखमल अज्ञानीने एक किताब लिखने की सोची, जिसमें दुनिया भर के मूर्खों के क़िस्से हों। वह बहुत दिनों से चाह रहे थे कि अपनी बिरादरीवालों के लिए कुछ ऐसा कर जाएँ, जिससे ज़माना याद करे। उन्होंने किताब का नाम भी सोच रखा था-मूर्खों की महागाथा। दुनिया भर में चतुरों पर किताबें भरी पड़ी थीं, लेकिन मूर्ख बेचारों को किसी ने इस लायक़ ही न समझा था। इसलिए उन्होंने ठान लिया था कि मूर्खों की सच्चाई को दुनिया के सामने लाकर रहेंगे। उनका मानना था कि दुनिया सिर्फ बुद्धिमानों के ही भरोसे नहीं चल रही है, उसमें मूर्खों का भी गहरा योगदान है। वह मन ही मन पुलकित हो रहे थे कि इस किताब के छपते ही वह दुनिया में मशहूर हो जाएँगे। मूर्खों की बिरादरी उन्हें सिर-आँखों पर बिठा लेगी।

मूरखमल अपने दादा जड़बुद्धि के पास आशीर्वाद लेने गए। जड़बुद्धि सौ बरस पार कर चुके थे, पर देखने में साठ-सत्तर से ज़्यादा के नहीं लगते थे। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे मूर्खता परवान चढ़ती जा रही थी। उनके दिमाग़ में मूर्खता के ऐसे नए-नए आइडिए आते थे कि बुद्धिमान भी क्या सोच पाते। मूरखमल की बात सुनकर वह बोले, ‘‘शाबाश बेटा, तुम तो मूर्खता में मुझसे भी दस क़दम आगे निकले। ईश्वर ने कामयाबी दी तो दुनिया में मूर्खों के नाम का डंका बज जाएगा। बुद्धिमान हमारे चरणों में गिर पड़ेंगे। बेटा जा, मूर्खिस्तान चला जा। वह मूर्खों का स्वर्ग है। तुझे वहाँ ऐसे-ऐसे क़िस्से मिलेंगे कि तेरी किताब चुटकियों में पूरी हो जाएगी।’’
जड़बुद्धि से आशीर्वाद लेकर मूरखमल मूर्खिस्तान की ओर चल पड़े। जैसे ही वह मूर्खिस्तान की सीमा पर पहुँचे कि उन्हें एक आदमी ज़मीन पर लोटता-पोटता दिखा। लोट-पोटकर उसने धूल का बवंडर खड़ा कर दिया था। मूरखमल ने सोचा क्यों पचड़े में पड़ें। अस्पताल लेकर जाएँगे तो बिना मतलब की झंझट होगी। समय अलग बर्बाद होगा। पुलिस-वुलिस का चक्कर हुआ तो और मुसीबत हो जाएगी। वह उसे अनदेखा करके आगे बढ़ चले।
पर मूरखमल ठहरे लेखक। वह लेखक भी क्या जो संवेदनशील न हो। आज की दुनिया में वैसे भी संवेदनशीलता सिर्फ मूर्खों में ही बची है। आखिरकार वह लौट आए और उस आदमी को सँभालते हुए बोले, ‘‘क्या हो गया भाई? इस तरह क्यों तड़प रहे हो? पेट में दर्द हो रहा है या किसी ने ज़हर खिला दिया?’’
मूरखमल की बात सुनते ही वह आदमी उठ बैठा और लगा उन्हें खरी-खरी सुनाने, ‘‘ज़हर-संखिया तुम्हें मिले। मैं भला क्यों खाऊँ? पेट दर्द तुम्हें हो। तुम्हारे बाल-बच्चों को हो। मुझे क्यों होने लगा?’’
मूरखमल को आदमी की बात पर बिल्कुल भी ग़ुस्सा न आया। बल्कि वह हैरानी से बोले, ‘‘भले मानस, क्षमा करो अगर कुछ ग़लत कहा। पर इतना तो बता दो कि इस तरह जल बिन मछली बने क्यों तड़प रहे थे?’’
‘‘वह तो अपनी अम्मा की भुलक्कड़ी भोग रहा हूँ।’’ आदमी ने खीझते हुए जवाब दिया।
‘‘अम्मा की भुलक्कड़ी?’’ मूरखमल हैरान रह गए, ‘‘ज़रा पूरी बात तो बताओ।’’
वह आदमी बताने लगा, ‘‘दरअसल अम्मा ने मुझे दूध पीने को दिया था। पर उसमें शकर मिलाना भूल गईं। फीका दूध पीने की मुझे आदत नहीं। इसलिए मैं शकर फाँककर लोट-पोट रहा था ताकि पेट में अच्छी तरह मिल जाए।’’
आदमी की बात सुनते ही मूरखमल की बाछें खिल गईं। उन्हें अपनी किताब के लिए पहला िक़स्सा मिल गया था। उन्होंने फौरन काग़ज़-क़लम निकाला और सारी बातें नोट कर लीं। फिर आगे बढ़ चले। सोच-सोचकर ख़ुश हो रहे थे कि चलो शुरूआत तो अच्छी हो गई।
थोड़ी दूर चलने के बाद उन्हें एक जगह भीड़ दिखाई दी। उनका लेखक मन जाग उठा। वह फौरन उधर लपक लिए। पास जाकर देखा तो एक कुएँ के पास लोग इकट्ठा होकर झाँक रहे थे। कुछ लोग बग़ल के पोखरे से पानी ला-लाकर उसमें भर रहे थे। आस-पास ख़ूब शोर मच रहा था। पानी गिरने से आस-पास ख़ूब किचकिच हो रही थी।
मूरखमल को कुछ भी समझ न आया। वह पास पहुँचकर बोले, ‘‘अरे भाई क्या हो गया? लोग कुएँ से पानी निकालते हैं, तुम उसमें बाल्टी उड़ेल रहे हो?’’
एक आदमी जो उनका मुखिया लग रहा था, पास आया और बोला, ‘‘हमारे बच्चे की फुटबॉल खेलते समय कुएँ में गिर गई है। हम लोग उसे निकालने की कोशिश में लगे हैं।’’
‘‘पर इस तरह पानी भरने से क्या होगा?’’
‘‘अजी, जब कुएँ में पानी ऊपर तक भर जाएगा तो फुटबॉल तैरकर अपने आप ऊपर आ जाएगी।’’ इतना बताकर वह आदमी कुएँ के पास चला गया और लोगों को जल्दी-जल्दी पानी भरने के लिए उकसाने लगा।
मूरखमल उनकी मूर्खता पर लाजवाब होकर सोचने लगे कि अब तक हम ख़ुद को सबसे बड़ा मूर्ख समझे हुए थे। ये लोग तो हमसे भी दस क़दम आगे हैं। उन्होंने कॉपी-क़लम निकाला। पूरा िक़स्सा नोट किया और गदगद होते हुए आगे बढ़ चले।
मूरखमल कुछ दूर और चले तो उन्हें भूख लग आई। सामने उन्हें एक होटल दिखा। हलवाई गरमा-गरम जलेबियाँ तल रहा था। मूरखमल के मुँह में पानी आने लगा। लपककर होटल पर पहुँचे और बोले, ‘‘अरे, भैया, फटाफट आधा किलो जलेबी तोल दो। भूख से पेट में मरोड़ उठ रही है।’’
हलवाई ने उनकी बात नहीं सुनी। वह जलेबियाँ तल-तलकर ढेर ऊँचा करता रहा। जब मूरखमल ने दोबारा पूछा तो उसने उचटती-सी निगाह डाली और बोला, ‘‘जलेबी नहीं है---।’’
मूरखमल हैरत में पड़ गए। थोड़ा ग़ुस्सा भी आया। बोले, ‘‘सामने जलेबियों का हिमालय खड़ा कर रखा है और कहते हो नहीं है?’’
‘‘है तो, पर ये तुम्हारे लिए नहीं है। ये जलेबियाँ मूर्खिस्तान के वैज्ञानिक मैडमैन हॉफविट की हैं।’’
मूरखमल अपनी भूख को दबाते हुए बुदबुदाए, ‘‘अच्छा, आर्डर की होगीं। चलो, कोई और दूकान देखता हूँ---।’’
‘‘कहीं नहीं मिलेंगी---’’ हलवाई उसी तरह जलेबियाँ तलता हुआ बोला, ‘‘मूर्खिस्तान की सारी जलेबियाँ मैडमैन की प्रयोगशाला में ही जाती हैं।’’
मूरखमल हैरत में पड़ गए। यह मैडमैन इंसान है या भूत? इतनी जलेबी इंसान तो खा नहीं सकता है? सच्चाई जानने वह वैज्ञानिक के घर की ओर चल दिए।
मैडमैन का घर पूछने की उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ी। जिधर मक्खियों और मधुमक्खियों के झुंड जा रहे थे, उधर ही चल पड़े। मक्खियों की भन-भन के बीच जगह बनाते मूरखमल किसी तरह मैडमैन की प्रयोगशाला में पहुँचे। मैडमैन जलेबियों के ऊँचे-ऊँचे ढेरों के बीच अपना माइक्रोस्कोप लिए कुछ जाँच रहे थे। हर तरफ मिठास की चिप-चिप फैली हुई थी।
मूरखमल थोड़ी देर तक देखते रहे। मैडमैन को काम में मगन देख उन्होंने टोकना उचित नहीं समझा। पर जब मक्खियों और मधुमक्खियों ने उन्हें हेलीपैड बनाकर उन पर लैंडिंग शुरू कर दी तो उनसे न रहा गया। उन्होंने मक्खियों की भनभनाहट के बीच चिल्लाकर कहा, ‘‘वैज्ञानिक जी---! आप ये क्या कर रहे हैं?’’
मैडमैन ने एक नज़र उठाकर उनकी ओर देखा और चुप रहने का इशारा करते हुए बोले, ‘‘श---श---श---मैं बहुत महत्वपूर्ण खोज में लगा हूँ।’’
मूरखमल चुप न रहा गया। वह बोले, ‘‘पर आख़िर आप कर क्या रहे हैं?’’
मैडमैन ने अपना माइक्रोस्कोप रख दिया और हताशा से बोले, ‘‘मैं पिछले पंद्रह सालों से इस बात की खोज में लगा हूँ कि जलेबी के अंदर रस कहाँ से भरा जाता है? एक-एक जलेबी चेक कर डाली पर अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली।’’
मूरखमल ख़ुश हो गए। उन्हें अपनी किताब के लिए ज़बरदस्त क़िस्सा मिला था। प्रयोगशाला से बाहर आए तो मधुमक्खियों ने उनका हुलिया भले ही बिगाड़ दिया था, पर वह बेहद ख़ुश थे। वह मक्खियों की भनभनाहट में अपनी गुन-गुन मिलाते हुए आगे बढ़ चले।
आगे उन्हें एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा दिखा। कपड़े फटे, बाल बिखरे, दाढ़ी बढ़ी हुई। हाथ में एक पोथा थामे हुए आसमान की ओर निहार रहा था। बीच-बीच में पोथे में कुछ लिखता भी जाता।
मूरखमल ने सोचा हो-न-हो यह कोई पागल है। इससे उलझना ठीक नहीं। कहीं मारपीट न कर बैठे। पर थोड़ा आगे बढ़ते ही उनका मन कलबुलाने लगा। वह अपनी किताब के लिए हर ख़तरा मोल लेने को तैयार थे। वह वापस लौटे और डरते-डरते बोले, ‘‘भाई साहब, आप इस पोथे में क्या लिख रहे हैं?’’
वह आदमी इतनी ज़ोर से हँसा कि मूरखमल डर गए। उसने कहा, ‘‘मैं मूर्खिस्तान का सबसे विद्वान प्रोफेसर हूँ। आजकल मैं मूर्खिस्तान की डिक्शनरी तैयार कर रहा हूँ।’’
मूरखमल ने हैरानी से पूछा, ‘‘पर इस डिक्शनरी में नया क्या है?’’
वह आदमी फिर हँसा और बोला, ‘‘इसमें मैंने मूर्खिस्तान में प्रचलित सारे शब्दों को इकट्ठा किया है। इसमें मूर्ख का मतलब बुद्धिमान है, काले का मतलब सफेद है, रात का मतलब दिन है, उल्टा का मतलब सीधा है। और जल्द ही मेरा काम पूरा होनेवाला है।’’
मूरखमल ख़ुशी से फूल गए। उन्हें लगा कि इसी तरह क़िस्से मिलते रहे तो उनकी किताब जल्द ही पूरी हो जाएगी।
वह मस्ती से गुनगुनाते आगे बढ़ चले। कुछ दूर चलते ही देखा कि लोगों ने पेड़ों में रस्सियाँ बाँध रखी हैं और उन्हें हिलाने की कोशिश कर रहे हैं। छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े सब उसमें शामिल हैं। लोग चिल्ला रहे हैं, ‘‘हाँ, हाँ और ज़ोर लगाओ! और तेज़ हिलाओ! अब थोड़ी-थोड़ी लग रही है।’’
भीड़ में जगह तलाशते मूरखमल किसी तरह पास पहुँचे और पूछा, ‘‘अरे भाई यह क्या हो रहा है? पेड़ों को इस तरह क्यों हिलाया जा रहा है?’’
एक बूढ़ा आदमी सामने आया और बोला, ‘‘आजकल गर्मी का मौसम है। पर हवा बिल्कुल नहीं चल रही है। हम लोग कोशिश में लगे हैं कि पेड़ों को हिलाकर किसी तरह हवा चलाई जाए।’’
मूरखमल लाजवाब हो गए। उन्हें समझ में आ गया कि दादा जड़बुद्धि ने मूर्खिस्तान को मूर्खों का स्वर्ग क्यों कहा था। उनका मन इतना रमा कि उन्होंने वहीं बसने का इरादा बना लिया।
बहरहाल, मूरखमल जी अब भी मूर्खिस्तान में जमे हुए हैं। उनकी किताब के कई हज़ार पृष्ठ भर चुके हैं। हम सब प्रार्थना करते हैं कि उनकी किताब जल्द पूरी हो और हमें मूर्खों के ढेर सारे क़िस्से पढ़ने को मिलें।


5 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/05/2019 की बुलेटिन, " भई, ईमेल चेक लियो - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  2. रोचक किस्से मूर्खिस्तान के...

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन किस्सा मूर्खिस्तान का। मजा आ गया। आपकी बाल कहानियों का संग्रह कहाँ से लिया जा सकता है? कृपया उसका लिंक भी दें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विकास जी आप अपना ई मेल एड्रेस दें तो मैं अपनी कुछ किताबों के पीडीएफ भेज दूँ।

      Delete
  4. बहुत बढिया किस्से है.. मगर जल्दी खतम हो गया

    ReplyDelete