Sunday, 18 August 2019

गिरा टूटकर डाली से


पीपल का एक पेड़ था। ख़ूब घनेरा। उसकी लंबी और मोटी शाखाएँ दूर तक फैली हुई थीं।
पतझर का मौसम आया तो उसके पत्ते पीले होकर झड़ने लगे। पत्तों से भरी घनी डालें तिनकों का जाल होकर रह गईं।
सबसे ऊँची डाली पर बचा एक पत्ता टूटकर गिरने से डर रहा था। जब हवा का झोंका आता तो वह थर-थर काँप उठता। उसके पैर उखड़ने लगते। डर के मारे वह पीला और कमज़ोर पड़ता जा रहा था। उसने हवा से विनती करते हुए कहा, ‘‘बहन, मुझ पर दया करो। तुम्हारे तेज़ झोंके मेरे पैर उखाड़े दे रहे हैं।’’
हवा ने कहा, ‘‘देखो पीले पत्ते, बसंत आने में समय कम बचा है और अभी बहुत काम बाक़ी पड़ा है। अगर मैंने डालों से पुराने पत्ते नहीं हटाए तो बसंत उनमें नई-नई कोपलें कैसे टाँकेगा? और सूरज उन्हें भोर की सुनहरी किरणें पिलाकर कैसे हरा-भरा कर सकेगा?’’
पत्ते के बार-बार गिड़गिड़ाने पर हवा ने उसे उड़ाकर एक पुराने घर के झरोखे में बिठा दिया। हवा ने कहा, ‘‘यहाँ तुम्हें छेड़ने कोई नहीं आएगा। तुम यहाँ अराम से बैठकर दुनिया के नज़ारे ले सकते हो।’’
मरता क्या न करता। पत्ते को मानना पड़ा।
पर अभी थोड़ा ही समय बीता था कि एक भूरी चींटी आकर उस पर चिल्लाने लगी। उसके पीछे दूर तक चींटियों की लंबी क़तार बनी हुई थी।
‘‘ओ पीले पत्ते, हमारा रास्ता छोड़ो। हम भोजन के लिए एक मरे हुए टिड्डे को लाने जा रहे हैं।’’
‘‘देखो, मैं अभी थका हूँ। घबराहट से मेरा शरीर अब तक काँप रहा है। इसलिए मैं कहीं नहीं जानेवाला। तुम चाहो तो मुझे लाँघकर जा सकती हो।’’ पत्ते ने कहा।
चींटियाँ राज़ी हो गईं। उनकी कतार उसके ऊपर से होकर उस पार जाने लगी। नन्हें पैरों से पत्ते को गुदगुदी हुई तो वह हँसने लगा।
‘‘बेवजह हँसना बंद करो। और यहाँ से दफा हो जाओे। मुझे यहाँ अपना जाल बनाना है।’’ तभी छत से लटकती हुई एक ग़ुस्सैल मकड़ी आई और उस पर चिल्लाने लगी।
‘‘मकड़ी रानी, तुम तो कहीं भी अपना जाल लगा सकती हो। यह जगह मुझ बेचारे के लिए क्यों नहीं छोड़ देती?’’

मकड़ी ने मुँह बनाकर कहा, ‘‘यहाँ जाल में फँसने के लिए कीट-पतंगे ख़ूब मिलते हैं। अंदर के अंधेरे से जब वे रोशनी की तरफ भागते हैं तो मैं उन्हें अपने जाल में फँसा लेती हूँ।’’
‘‘पर मैं यहाँ से हटकर आख़िर कहाँ जाऊँ?’’
आख़िरकार जब पत्ता जब देर तक गिड़गिड़ाता रहा तो मकड़ी को दया आ गई। वह दूसरी जगह की तलाश में चली गई।
पत्ते ने सुकून से एक बड़ी-सी जमुहाई ली और आँखें बंद कर लीं।
पर तभी तेज़ भनभनाहट से उसकी नींद खुल गई। उसने उनींदी आँखें खोलीं तो देखा एक ततैया नन्हें पैरों में मिट्टी का लोंदा लटकाए झरोखे के भीतर आने को बेचैन है।
‘‘अब तुम्हें क्या चाहिए?’’ पत्ते ने उबासी लेते हुए पूछा।
‘‘मुझे यहाँ अपने लार्वे के लिए मिट्टी का घर बनाना है।’’ ततैया ने जवाब दिया।
‘‘तुम कहीं और क्यों नहीं चली जातीं?’’
‘‘यह जगह धूप और पानी से दूर है। यहाँ मेरे लार्वे सुरक्षित रहेंगे।’’
‘‘देखो, मैं यह जगह नहीं छोड़नेवाला। तुम कोई और जगह तलाश लो,’’ पत्ते ने झुँझलाकर कहा और करवट लेकर आँखें बंद कर लीं।
ततैया उसे उठाने की कोशिश में असफल हो गई तो निराश होकर दूसरी जगह की तलाश में चली गई।
पत्ता अपनी विजय का आनंद ले भी नहीं पाया था कि अचानक तेज़ हवा का झोंका आया और वह उड़ते-उड़ते बचा।
‘‘ओए, छोटू! यहाँ से जल्दी निकल,’’ कबूतरों का जोड़ा पंख फड़फड़ाते हुए मँडरा रहा था। 
पत्ता उन्हें देखकर डर गया और गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘लेकिन मैं यहाँ से हटा तो सीधा नीचे गिरूँगा और लोगों के पैरों तले रौंद दिया जाऊँगा। हवा से शुष्क हो रहा मेरा शरीर चूर-चूर हो जाएगा।’’
उसकी बात पर दोनों कबूतर गुटर-गूँकरके हँसने लगे।
कबूतरी बोली, ‘‘तुम बेवजह डरते हो। देखो, तुम्हारे सारे साथी तितलियों की तरह हवा में तैर-तैरकर धरती पर उतर रहे हैं। सब कैसी मस्ती कर रहे हैं। एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नाच-गा रहे हैं। कोई कलाबाज़ियाँ खा रहा है। कोई दौड़ लगा रहा है। कोई उछल-कूद रहा है। कोई खिलखिला रहा है। तुम बेवजह डर रहे हो। बाहर निकलो, देखो हर तरफ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ बिखरी हुई हैं।’’
पत्ते ने नीचे झाँककर देखा। सचमुच सारे पत्ते उछल-कूदकर मौज मना रहे थे। उन्हें ख़ुश देखकर पत्ते के मन का डर ख़त्म हो गया।
उसने झरोखे से बाहर हल्की-सी छलाँग लगाई और हवा में तैर गया। वह सीधे पेड़ की जड़ों के पास गिरा। वहाँ नमी थी। उसके शुष्क हो रहे तन को बहुत सुकून मिला। उसने अपना शरीर ढीला करके धरती से सटा दिया ताकि वह ज़्यादा से ज़्यादा नमी सोख सके। अब पत्ते को बहुत अच्छा लग रहा था।



5 comments:

  1. आनंदित करने वाली ☺️👍

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  2. रविवारी जनसत्ता की नन्हीं दुनिया में आज एक लंबे अरसे के बाद कोई बेहतरीन कहानी प्रकाशित हुई है। लीक से हटकर एकदम पहले दर्जे की बालकहानी। फैंटेसी ऐसी कि बिल्कुल जीवंत लगती है। झरोखे में खड़े होकर ऐसा सूक्ष्म निरीक्षण करना या ऐसा सोच लेना, हर कहानीकार के बस की बात नहीं है। ऐसा तो केवल बालमन के सबसे ख़तरनाक जासूस अरशद ख़ान ही कर सकते हैं।

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  3. उम्दा कहानी।उत्कृष्ठ शिल्प,बाल मन के अनुरूप नवीनता लिए मजेदार, दमदार कहानी। हार्दिक बधाई

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  4. उम्दा कहानी।उत्कृष्ठ शिल्प,बाल मन के अनुरूप नवीनता लिए मजेदार, दमदार कहानी। हार्दिक बधाई

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